astrology

जानिए दिवाली का ज्योतिष महत्व और दीवाली क्यों मनाई जाती है?


हिंदू धर्म में हर त्यौहार का ज्योतिष महत्व होता है। माना जाता है कि विभिन्न पर्व और त्यौहारों पर ग्रहों की दिशा और विशेष योग मानव समुदाय के लिए शुभ फलदायी होते हैं। हिंदू समाज में दिवाली का समय किसी भी कार्य के शुभारंभ और किसी वस्तु की खरीदी के लिए बेहद शुभ माना जाता है। इस विचार के पीछे ज्योतिष महत्व है।पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार  दीपावली के आसपास सूर्य और चंद्रमा तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में स्थित होते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य और चंद्रमा की यह स्थिति शुभ और उत्तम फल देने वाली होती है। तुला एक संतुलित भाव रखने वाली राशि है। यह राशि न्याय और अपक्षपात का प्रतिनिधित्व करती है। पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार तुला राशि के स्वामी शुक्र जो कि स्वयं सौहार्द, भाईचारे, आपसी सद्भाव और सम्मान के कारक हैं। इन गुणों की वजह से सूर्य और चंद्रमा दोनों का तुला राशि में स्थित होना एक सुखद व शुभ संयोग होता है।
 दीपावली का आध्यात्मिक और सामाजिक दोनों रूप से विशेष महत्व है। हिंदू दर्शन शास्त्र में दिवाली को आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव कहा गया है।
दीवाली की शुरुआत को प्राचीन भारत से समझा जा सकता है। पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार दीवाली का इतिहास दिव्य चरित्रों से भरा हुआ है और ये पौराणिक कथाएं हिंदू धार्मिक ग्रंथों की कथानक, आमतौर पर पुराणों के लिए बाध्य हैं। यद्यपि, सभी कहानियां और इतिहास, बुराइयों पर अच्छाई की जीत के ही एक उत्कृष्ट सत्य की तरफ इशारा करता है। केवल प्रस्तुति के तरीके और पात्र हर कहानी के साथ अलग हैं। दीवाली को रोशनी का त्यौहार माना जाता है, शक्ति का दीपक, उच्च आत्माओं और हमारे भीतर ज्ञान को प्रकाश में रखते हुए इसका अर्थ है त्यौहार के पांच दिनों के प्रत्येक महत्वपूर्ण उद्देश्य पर व्याख्या और प्रतिबिंबित करना।
इस साल दिवाली 19 अक्टूबर 2017 यानि गुरुवार को मनाई जाएगी। पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कार्तिक अमावस्या के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर सभी देवताओं की पूजा इस विधि से करनी चाहिए।
 1.  देवी लक्ष्मी का पूजन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में किया जाना चाहिए। प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न में पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। क्योंकि ये चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। मान्यता है कि अगर स्थिर लग्न के समय पूजा की जाये तो माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में ठहर जाती है।
2.  महानिशीथ काल के दौरान भी पूजन का महत्व है लेकिन यह समय तांत्रिक, पंडित और साधकों के लिए ज्यादा उपयुक्त होता है। इस काल में मां काली की पूजा का विधान है। इसके अलावा वे लोग भी इस समय में पूजन कर सकते हैं, जो महानिशिथ काल के बारे में समझ रखते हों।

About amitsingh

0 comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.