विशेष--जानिए क्या हैं अक्षय नवमी/आवला नवमी (29 अक्टूबर 2017(रविवार) को ) और उसका महत्त्व--
प्रिय पाठकों/मित्रों, हमारे देश भारत में हिन्दू पंचांगों के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी कहते हैं। दिवाली के लगभग 10 दिनों बाद और कार्तिक मास में होने वाली इस पूजा को आंवला नवमी भी कहते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की कार्तिक मास में वैसे तो स्नान का अपना ही महत्व होता है, लेकिन इस दिन स्नान करने से अक्षय प्राप्त होता है। हिंदू रीति रिवाज में इस दिन शादी-शुदा महिलाएं व्रत रखती हैं और कथा भी सुनती हैं। इस साल हिंदू पंचांग के अनुसार 29 अक्टूबर 2017(रविवार) को ये पूजा होगी।
पौराणिक मान्याओं के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं। पद्म पुराण के अनुसार के अनुसार इस दिन द्वापर युग की शुरुआत हुई थी। आंवला नवमी पर आंवला के वृक्ष के पूजन का बहुत अधिक महत्व है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस नवमी में दान-पुण्य करन से दूसरों नवमी से कई गुना ज्यादा फल मिलता है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से संतान की भी प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि आज ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई। इसी कारण कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षतों से कुष्माण्ड का पूजन करना चाहिये। साथ ही आज के दिन विधि विधान से तुलसी का विवाह कराने से भी कन्यादान तुल्य फल मिलता है। चरक संहिता में बताया गया है अक्षय नवमी को महर्षि च्यवन ने आंवला खाया था जिस से उन्हें पुन: जवानी अर्थात नवयौवन प्राप्त हुआ था। आप भी आज के दिन यह उपाय करके नवयौवन प्राप्त कर सकते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस दिन कुष्मांड (काशीफल /कददू ) में गुप्तदान (सोना ,चाँदी ,रुपया ) रख कर अगरबत्ती ,फूल, रोली,चावल से पूजा कर गाय का घी ,अन्न
,फल, दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को देने से विशेष फल मिलता है इसीलिए इसे कुष्मांड नवमी भी कहते है। इस दिन गुप्तदान व आँवला दान करना चाहिए।
इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजन का भी विधान है। साथ ही इस दिन पूजन, तर्पण, स्नान और दान का बहुत अधिक महत्व है। इस बार अक्षय नवमी 29 अक्टूबर 2017(रविवार) को मनाई जाएगी । माना जाता है कि अक्षय नवमी को श्रीकृष्ण ने मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा कर कंस के अत्याचारों के विरुद्ध जनता को जगाया था और अगले दिन कंस का वध कर साबित कर दिया कि सत्य अक्षय होता है। मतानुसार, त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन से हुआ था। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का भी विधान है। अक्षय का अर्थ है, जिसका क्षरण न हो। मान्यता है कि इस दिन किए गए सद्कार्र्यो का अक्षय फल प्राप्त होता है।
==================================================================
माता लक्ष्मी से संबंध -----
आंवला वृक्ष की पूजा और इस वृक्ष के नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरुआत करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती हैं। इस संदर्भ में कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आयीं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी एवं बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। इसी समय से यह परंपरा चली आ रही है। इस दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव न हो तो इस दिन आंवला जरूर खाना चाहिए।
============================================================================
आंवला और वास्तु
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार आंवले का वृक्ष घर में लगाना वास्तु की दृष्टि से भी शुभ माना जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार पूर्व की दिशा में बड़े वृक्षों को नहीं लगाना चाहिए लेकिन आंवले को इस दिशा में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इस वृक्ष को घर की उत्तर दिशा में भी लगाया जा सकता है।
=====================================================================
जानिए क्या है आंवला नवमी का महत्व---
इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न दान करने से हर मनोकामना पूरी होती है। अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का नियम है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को अतिप्रिय है, क्योंकि इसमें लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए इसकी पूजा करना माना विष्णु लक्ष्मी की पूजा करना। इस दिन व्रत करने से शादीशुदा औरतों की सभी मनोकामना पूरी होती है। आंवला के पेड़ के नीचे साफ सफाई करके पूजा करें।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की अक्षय नवमी का शास्त्रों में वही महत्व बताया गया है जो वैशाख मास की तृतीया का है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के दिन किया गया पुण्य कभी समाप्त नहीं होता है। इस दिन जो भी शुभ कार्य जैसे दान, पूजा, भक्ति, सेवा किया जाता है उनका पुण्य कई-कई जन्म तक प्राप्त होता है। इसी प्रकार इस दिन कोई भी शास्त्र विरूद्घ काम किया जाए तो उसका दंड भी कई जन्मों तक भुगतना पड़ता है इसलिए अक्षय नवमी के दिन ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे किसी को कष्ट पहुंचे।
इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर ब्राह्मणों को खिलाना चाहिए इसके बाद स्वयं भोजन करना चाहिए। भोजन के समय पूर्व दिशा की ओर मुंह रखें। शास्त्रों में बताया गया है कि भोजन के समय थाली में आंवले का पत्ता गिरे तो यह बहुत ही शुभ होता है। थाली में आंवले का पत्ता गिरने से यह माना जाता है कि आने वाले साल में व्यक्ति की सेहत अच्छी रहेगी। धातृ के वृक्ष की पूजा एवं इसके वृक्ष के नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरूआत करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती हैं। इस संदर्भ में कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आयीं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी एवं बेल का गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को।
आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। इसी समय से यह परंपरा चली आ रही है।
अक्षय नवमी के दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इस दिन आंवला जरूर खाना चाहिए। चरक संहिता के अनुसार अक्षय नवमी को आंवला खाने से महर्षि च्यवन को फिर से जवानी यानी नवयौवन प्राप्त हुआ था।
========================================================================
क्या करना चाहिए---
इस दिन गुप्त दान करना शुभ माना जाता है। आंवला के पेड़ के नीचे 10 दिनों तक भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। दीया जलाया जाता है, एक धागा बांधकर मनोकामनाएं मांगी जाती है। परिक्रमा कर रक्षा सूत्र बांधा जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ये पूजा सालों से चली आ रही है। इसी पेड़ के नीचे बैठकर व्रती खाना भी खाती हैं। ये तिथि बहुत ही शुभ होती है। इसलिए इस दिन कई शुभ काम शुरू किए जाते हैं। नवमी के दिन जगद्धात्री पूजा होती है। पूरे दिन महिलाएं व्रती रहती हैं।
इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करना और पेड़ के नीचे भोजन करना ,आंवले खाना अत्यंत फायदेमंद माना जाता है। भोजन करते समय पूर्व
दिशा में मुँह रखना चाहिए। भोजन किसी भी आंवला जरूर होना चाहिए। आंवले को किसी भी रूप में खाना अच्छा ही होता है। आंवले का मुरब्बा , आंवला केंडी , आंवला सुपारी या त्रिफला चूर्ण के रूप में आंवला रोजाना आसानी से ले सकते है। इन सबको बनाने की आसान विधि इस वेबसाइट में ही मिल जाएँगी। आंवले का तेल सिर में लगाना बालों के लिए फायदेमंद होता है।
============================================================================
इस विधि से करें आंवला वृक्ष का पूजन---
आंवला नवमी के दिन सुबह स्नान कर दाहिने हाथ में जल, चावल, फूल आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प करें।
नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर खाने का विशेष महत्व है। यदि आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाने में असुविधा हो तो घर में भोजन बनाकर आंवला के वृक्ष के नीचे जाकर पूजन करने के बाद भोजन करना चाहिए। भोजन में सुविधानुसार खीर, पूड़ी या मिष्ठान्न हो सकता है।
आंवले के पेड़ के नीचे साफ सफाई करें, धो लें और फिर पूजा करके नीचे बैठकर खाएं। अगर पेड़ ना मिले तो उस दिन आंवला जरूर खाएं। बहुत शुभ होता है। आंवले का रस मिलाकर नहाएं। ऐसा करने से आपके ईर्द-गिर्द जितनी भी नेगेटिव ऊर्जा होगी वह समाप्त हो जाएगी।सकारात्मकता और पवित्रता में बढ़ौतरी होगी। फिर आंवले के पेड़ और देवी लक्ष्मी का पूजन करें। इस तरह मिलेंगे पुण्य, कटेंगे पाप।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की पूजा करने के लिए आंवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर षोडशोपचार पूजन करें। दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें। संकल्प के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके ऊँ धात्र्यै नम: मंत्र से आह्वानादि षोडशोपचार पूजन करके आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें। इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में कच्चे सूत्र लपेटें। फिर कर्पूर या घृतपूर्ण दीप से आंवले के वृक्ष की आरती करें।
आंवला नवमी के दिन सुबह नहा धोकर पूर्व की और मुंह करके आँवले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। पेड़ की जड़ में दूध की धार देकर ,पेड़ के चारो ओर सूत लपेट कर कपूर या घी की बत्ती से आरती करके एक सौ आठ परिक्रमा करनी चाहिए। यदि किसी कारण से इतनी परिक्रमा लगाना सम्भव न हो तो आठ परिक्रमा लगाकर हाथ जोड़ लेने चाहिए। पूजन सामग्री में जल , रोली , चावल , गुड़ , पताशे , दीपक, ब्लाउज , आँवला और दक्षिणा होने चाहिए।
इस दिन किसी ब्राह्मण- ब्राह्मणी को जोड़े से भोजन करवाकर/जिमाकर अपनी सुविधा व श्रद्धानुसार साड़ी , ब्लाउज़ , दक्षिणा आदि देनी चाहिए। भोजन में आँवला अवश्य रखना चाहिए। इसके बाद स्वयं भोजन करें । इस दिन एक समय भोजन करके व्रत करें और भोजन में आँवला अवश्य शामिल करे यदि सम्भव हो तो आँवले के पेड़ के नीचे भोजन करे।
==================================================================================
इस विधि से करें आंवला वृक्ष का पूजन---
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की आंवला नवमी के दिन सुबह स्नान कर दाहिने हाथ में जल, चावल, फूल आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प करें-
अद्येत्यादि अमुकगोत्रोमुक (अपना गोत्र बोलें) ममाखिलपापक्षयपूर्वकधर्मार्थकाममोक्षसिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये।
ऐसा संकल्प कर आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके ऊं धात्र्यै नम: मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मंत्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण
पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।
ते पिवन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
《इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में निम्न मंत्र से सूत्र वेष्टन करें-》
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तु ते।।
इसके बाद कर्पूर या शुद्ध घी के दिए से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें -
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु ;
इसके बाद आंवले के वृक्ष के नीचे ही ब्राह्मणों को भोजन भी कराना चाहिए और अंत में स्वयं भी आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करना चाहिए। एक पका हुआ कुम्हड़ा (कद्दू) लेकर उसके अंदर रत्न, सोना, चांदी या रुपए आदि रखकर निम्न संकल्प करें-
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सुख सौभाग्यादीनामुक्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये।
इसके बाद योग्य ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कुम्हड़ा दे दें और यह प्रार्थना करें-
कूष्णाण्डं बहुबीजाढयं ब्रह्णा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।
पितरों के शीत निवारण के लिए यथाशक्ति कंबल आदि ऊनी कपड़े भी योग्य ब्राह्मण को देना चाहिए।
घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि में आंवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा, दानादि करने की भी परंपरा है अथवा गमले में आंवले का पौधा रोपित कर घर में यह कार्य संपन्न कर लेना चाहिए।
======================================================================================
विशेष जानकारी--- अक्षय नवमी के दिन मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करने का महत्त्व क्यों हैं ??
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की अक्षय नवमी के दिन मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करने को भी विशेष महत्व दिया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण ने मथुरा-वृंदावन में अपने ग्वाल-सखाओं के साथ घूम-घूम कर कंस के आतंक के विरुद्ध जन-जागरण किया था और वहां के निवासियों से मिलकर उनका पक्ष जाना था। इसका ही परिणाम था कि अगले दिन दशमी को श्रीकृष्ण ने अत्याचारी शासक कंस का अंत कर दिया था। इस तरह यह जन-जागरण का भी पर्व है। यह पर्व यह संदेश देता है कि जीत हमेशा सत्य की ही होती है। असत्य, आतंक और छल भले ही कितने भी शक्तिशाली हों, उनकी उम्र ज्यादा नहीं होती। सत्य अक्षय है। अत: सर्वदा सत्य के मार्ग का ही वरण करना चाहिए। आज भी आम लोग इस दिन मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा को पूरा करते हैं। यह परिक्रमा मथुरा के विश्राम घाट पर यमुना जल के आचमन को लेकर शुरू होती है और यहीं पर आकर समाप्त होती है। परिक्रमा मार्ग में अनेक मंदिर हैं, जिनके लोग दर्शन लाभ प्राप्त करते हैं।
पौराणिक ग्रंथों में अक्षय नवमी के संबंध में एक रोचक कथा भी है। दक्षिण में स्थित विष्णुकांची राज्य के राजा जयसेन के इकलौते पुत्र का नाम मुकुंद देव था। एक बार राजकुमार मुकुंद देव जंगल में शिकार खेलने गए। तभी उनकी नजर एक सुंदरी पर पड़ी। वे उस पर मोहित हो गए। युवती का नाम किशोरी था और वह इसी राज्य के व्यापारी कनकाधिप की पुत्री थी। मुकुंद देव ने उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। इस पर युवती रोने लगी। उसने कहा कि मेरे भाग्य में पति का सुख लिखा ही नहीं है। राज ज्योतिषी ने कहा है कि मेरे विवाह मंडप में बिजली गिरने से मेरे वर की तत्काल मृत्यु हो जाएगी।
मुकुंद देव को अपने प्रस्ताव पर अडिग देख किशोरी भगवान शंकर की आराधना में लीन हो गई और मुकुंद देव अपने आराध्य सूर्य की आराधना में। कई माह बाद भगवान शंकर ने युवती से सूर्य की आराधना करने को कहा। दोनों सूर्य की आराधना कर रहे थे, इसी बीच विलोपी नामक दैत्य की नजर किशोरी पर पड़ी। वह उस पर झपटा। सूर्य देव ने अपने तेज से उसे तत्क्षण भस्म कर दिया और युवती से कहा कि तुम कार्तिक शुक्ल नवमी को आंवले के वृक्ष के नीचे विवाह मंडप बनाकर मुकुंद देव से विवाह कर लो। किशोरी और मुकुंद देव ने मिलकर मंडप बनाया। अकस्मात घनघोर घटाएं घिर आई और बिजली चमकने लगी। भांवरें पड़ गई, तो आकाश से बिजली विवाह मंडप की ओर गिरने लगी, लेकिन आंवले के वृक्ष ने उसे रोक लिया।
=====================================================================================
प्रचलित कथा ---
काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा और दानी वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराये बच्चे की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने मना कर दिया। लेकिन उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी। इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया और लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी। इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्मण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है, इसलिए तू गंगातट पर जाकर भगवान का भजन कर गंगा स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है।
वैश्य की पत्नी गंगा किनारे रहने लगी। कुछ दिन बाद गंगा माता वृद्ध महिला का वेष धारण कर उसके पास आयीं और बोली तू मथुरा जाकर कार्तिक नवमी का व्रत तथा आंवला वृक्ष की परिक्रमा कर तथा उसका पूजन कर। यह व्रत करने से तेरा यह कोढ़ दूर हो जाएगा। वृद्ध महिला की बात मानकर वैश्य की पत्नी अपने पति से आज्ञा लेकर मथुरा जाकर विधिपूर्वक आंवला का व्रत करने लगी। ऐसा करने से वह भगवान की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गई तथा उसे पुत्र की प्राप्ति भी हुई।
========================================================================
विष्णु का स्वरूप है आंवला
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शास्त्रों के अनुसार आंवला, पीपल, वटवृक्ष, शमी, आम और कदम्ब के वृक्षों को चारों पुरुषार्थ दिलाने वाला कहा गया है। इनके समीप जप-तप पूजा-पाठ करने से इंसान के सभी पाप मिट जाते हैं। पद्म पुराण में भगवान शिव ने कार्तिकेय से कहा है 'आंवला वृक्ष साक्षात् विष्णु का ही स्वरूप है। यह विष्णु प्रिय है और इसके स्मरण मात्र से गोदान के बराबर फल मिलता है।'
===============================================================
जानिए विभिन्न रोगो के निवारण में आंवले का उपयोग---
हमारे शास्त्रों में वर्णित पौराणिक कथा के कारण आंवले के वृक्ष को पूजनीय माना जाने लगा। हालांकि आंवले का वृक्ष औषधीय गुणों से परिपूर्ण होता है। पौराणिक ग्रंथों से लेकर नए शोधों तक में इसके अनेक गुण बताए गए हैं। इसलिए इसकी पूजा का तात्पर्य इस अत्यंत लाभकारी वनस्पति को बचाये रखने का संकल्प लेना भी है, ताकि हम स्वस्थ रह सकें। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की आंवले का फल हो या इसका जूस, सेहत के लिए कितना फायदेमंद है, इसका जिक्र आयुर्वेद से लेकर एलोपैथ तक विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में आपको मिलेगा ही।
न्यूट्रिशन एक्सपर्ट की मानें तो एक आंवले में दो संतरे जितनी मात्रा में विटामिन सी मौजूद है। इसके अलावा, आंवले पोलीफेनॉल्स, आयरन, जिंक, कैरोटीन, फाइबर, विटामिन बी कांप्लेक्स, कैल्शियम, एंटीऑक्सीडेंट्स आदि अच्छी मात्रा में मौजूद हैं।
बुखार :
1. आंवला 50 ग्राम और अंगूर (द्राक्षा) 50 ग्राम को लेकर पीसकर चटनी बना लें। इस चटनी को कई बार चाटने से बुखार की प्यास और बेचैनी समाप्त होती है।
2. आंवले का काढ़ा बनाकर सुबह और शाम को पीने से वृद्धावस्था में जीर्ण-ज्वर और खांसी में राहत मिलती है।
3. आंवला 6 ग्राम, चित्रक 6 ग्राम, छोटी हरड़ 6 ग्राम और पीपल 6 ग्राम आदि को लेकर पीसकर रख लें। 300 मिलीलीटर पानी में डालकर उबाल लें, एक-चौथाई पानी रह जाने पर पीने से बुखार उतर जाता है।
हदय रोग :
1. दिल में दर्द शुरू होने पर आंवले के मुरब्बे में तीन-चार बूंद अमृतधारा सेवन करें।
2. भोजन करने के बाद हरे आंवले का रस 25-30 मिलीलीटर रस ताजे पानी में मिलाकर सेवन करें।
3. एक चम्मच सूखे आंवले का चूर्ण फांककर ऊपर से लगभग 250 मिलीलीटर दूध पी लें।
4. आंवले में विटामिन-सी अधिक है। इसके मुरब्बे में अण्डे से भी अधिक शक्ति है। यह अत्यधिक शक्ति एवं सौन्दर्यवर्द्धक है। आंवले के नियमित सेवन से हृदय की धड़कन, नींद का न आना तथा रक्तचाप आदि रोग ठीक हो जाते हैं। रोज एक मुरब्बा गाय के दूध के साथ लेने से हृदय रोग दूर रहता है। हरे आंवलों का रस शहद के साथ, आंवलों की चटनी, सूखे आंवला की फंकी या मिश्री के साथ लेने से सभी हृदय रोग ठीक होते हैं।
5. सूखा आंवला और मिश्री समान भाग पीस लें। इसकी एक चाय की चम्मच की फंकी रोजाना पानी से लेने से हृदय के सारे रोग दूर हो जाते हैं।
6. आंवले का मुरब्बा दूध से लेने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है व किसी भी प्रकार के हृदय-विकार नहीं होते हैं।
जोड़ों के दर्द :
1. 20 ग्राम सूखे आंवले और 20 ग्राम गुड़ को 500 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 250 मिलीलीटर शेष तो इसे छानकर सुबह-शाम पिलाने से गठिया में लाभ होता है परन्तु इलाज के दौरान नमक छोड़ देना चाहिए।
2. सूखे आंवले को कूट-पीस लें और उसके चूर्ण से 2 गुनी मात्रा में गुड़ मिलाकर बेर के आकार की गोलियां बना लें। 3 गोलियां रोजाना लेने से जोड़ों का खत्म होता है।
3. आंवला और हरड़ 3-3 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण गर्म जल के साथ रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से जोड़ों (गठिया) का दर्द खत्म हो जाता है।
4. एक गिलास पानी में 25 ग्राम सूखे आंवले और 50 ग्राम गुड़ डालकर उबालें। चौथाई पानी रहने पर इसे छानकर 2 बार रोज पिलाएं। इस अवधि में बिना नमक की रोटी तथा मूंग की दाल में सेंधानमक, कालीमिर्च डालकर खाएं। इस प्रयोग के समय ठंडी हवा से बचें।
उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) :
1. आंवले का मुरब्बा खाने से उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) में लाभ होता है। एक-एक आंवला सुबह और शाम खाएं।
2. आंवले का चूर्ण एक चम्मच, गिलोय का चूर्ण आधा चम्मच तथा दो चुटकी सोंठ। तीनों को मिलाकर गर्म पानी से सेवन करें।
3. आंवले का चूर्ण एक चम्मच, सर्पगंधा तीन ग्राम, गिलोय का चूर्ण एक चम्मच। तीनों को मिलाकर दो खुराक करें और सुबह-शाम इसका इस्तेमाल करें।
============================================================
श्रीमान जी, धन्यवाद..
Thank you very much .
पंडित दयानन्द शास्त्री,
(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
0 comments:
Post a Comment