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: देव उठानी एकादशी 31 अक्टूबर (मंगलवार) 2017




व उठानी एकादशी 31 अक्टूबर (मंगलवार) 2017 

आप सभी को बासी दीवाली /देव उठानी ग्यारस / देव प्रबोधनी एकादशी एवं तुलसी विवाह पर्व की अनेकानेक शुभ मंगल कामनाएं....

प्रिय पाठकों/मित्रों, वर्ष भर की सभी एकादशी में कार्तिक शुक्ल एकादशी का विशेष महत्व है। इसे देवप्रबोधनी एकादशी या देव उठानी एकादशी के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस दिन चार महीने शयन के बाद भगवान विष्णु जगते हैं।देव उठनी एकादशी का बहुत महत्व है। जैसा की नाम ही बताता है(देव+उठनी) कि इसका संबंध देवी देवताओं के उठने से है। दरअसल भगवान विष्णु समेत अन्य देवी देवता चार महीने के लिये सो जाते हैं और इस एकादशी के दिन वो वापस जागते हैं। देव उठनी होने के बाद मुहुर्त खुल जाते हैं और शादी, विवाह, मुंडन समेत अन्य शुभ कार्य शुरू किये जाते हैं। देव उठनी पर कई जगह तुलसी विवाह किया जाता है। 

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस एकादशी पर व्रत भी किये जाते हैं।इस एकादशी को कार्तिक स्नान करने वाली महिलाएं तुलसी जी का शालिग्राम से विवाह संपन्न करती हैं। विधि-विधान से खूब गाजे-बाजे के साथ तुलसी वृक्ष से शालिग्राम के फेरे एक सुंदर मंडप के नीचे डाले जाते हैं। इसी दिन से 'पंचभीका' व्रत भी प्रारम्भ होता है, जो पांच दिन तक निराहार (निर्जला) रह कर किया जाता है। यह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष के लिए किया जाता है।

देवोत्थान एकादशी व्रत का फल एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ के बराबर होता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस दिन पवित्र नदियों में स्नान व भगवान विष्णु के पूजन का विशेष महत्व है। पुण्यादि करने से इसका महत्व और बढ़ जाता है। इस व्रत को करने से जन्म-जन्मांतर के पाप क्षीण हो जाते हैं तथा जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की अबूझ मुहूर्तों मे से एक माने जाने वाली देवउठनी एकादशी है, चार माह के विश्राम के बाद देव 31 अक्तूबर 2017 को जागेंगे। देवउठनी ग्यारस पर मंदिरों व घरो मे भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा-अर्चना की जाए। मंडप मे शालिग्राम की प्रतिमा एवं तुलसी का पौधा रखकर उनका विवाह कराया जाए। मंदिरों के व घरो मे गन्नो के मंडप बनाकर, पूजन कर उन्हे बेर,चने की भाजी, आंवला सहित अन्य मौसमी फल व सब्जियों के साथ पकवान का भोग अर्पित करे। शालिग्राम, तुलसी व शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। मंडप की परिक्रमा करते हुए भगवान से कुंवारो के विवाह कराने और विवाहितों के गौना कराने की प्रार्थना करे। गोधूलि बेला मे तुलसी विवाह करने का पुण्य लिया जाता है। शालिग्राम, तुलसी व शंख का पूजन करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन दीप मालिकाओ से घरों को रोशन किया जाए पटाखे चलाकर खुशियां मनाएं। इस व्रत को करने से समस्त रखते वाले व्यक्ति को अपने चित, इंद्रियों, आहार और व्यवहार पर संयम रखना होता है। इस दिन गंगा-स्नान, दीपदान, अन्य दानो आदि का विशेष महत्व है।  ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे 'महापुनीत पर्व' कहा है। इसलिए इसमे गंगा स्नान, दीपदान, होम, यज्ञ तथा उपासना आदि का विशेष महत्व है। कहा गया है कि यदि स्नान मे कुशा और दान करते समय हाथ मे जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की की प्राप्ति नहीं होती है। शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ-पैर धोले फिर आचमन करके हाथ मे कुशा लेकर स्नान करे, इसी प्रकार दान देते समय हाथ मे जल लेकर दान करे। आप यज्ञ और जप कर रहे है तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करे।

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2017 में देवोत्थान एकादशी---

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस वर्ष 2017 में देवोत्थान एकादशी का व्रत 31 अक्तूबर को है। साधु सन्यासी, विधवाओं एवं मोक्ष की इच्छा रखने वालों के लिये वैकल्पिक एकादशी 01 नवंबर को रखा जायेगा। इसे वैकल्पिक एकादशी को वैष्णव एकादशी भी कहा जाता है।

जानिए इस वर्ष देवोत्थान एकादशी 2017 तिथि व मुहूर्त----
देवोत्थान एकादशी तिथि –  31 अक्तूबर 2017
पारण का समय – 06:36 से 08:38 बजे तक (01 नवंबर 2017)
एकादशी तिथि आरंभ – 19:03 बजे से (30 अक्तूबर 2017)
एकादशी तिथि समाप्त – 18:55 बजे (31 अक्तूबर 2017)
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हमारे देश भारत में युगों पुरानी ये परम्पर.... 
जिसमे देव सोने के काल में विवाह आदि शुभ कार्यों निषेध माने जाते हैं और देवउठनी एकादशी के बाद ही फिर विवाह आदि शुभ कार्य किए जाते हैं। देव सोने और जागने का एक निश्चित काल है। आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी को देव सोते हैं और कार्तिक में देवोप्रबोधनी एकादशी के दिन देव उठते हैं। हिन्दू धर्म में ये मान्यता आज की नहीं है बल्कि ये भारत में युगों से चली आ रही है। 

लेकिन इसके पीछे का क्या कारण है शायद ही आपको पता होगा, चलिए जानते है.....
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शंखासुर नामक एक बलशाली असुर था। इसने तीनों लोकों में बहुत उत्पात मचाया। देवाताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु शंखासुर से युद्घ करने गए। कई वर्षों तक शंखासुर से भगवान विष्णु का युद्घ हुआ। युद्घ में शंखासुर मारा गया। युद्घ करते हुए भगवान विष्णु काफी थक गए अतः क्षीर सागर में अनंत शयन करने लगे।चार माह सोने के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान की निद्रा टूटी। देवताओं ने इस अवसर पर विष्णु भगवान की पूजा की। इस तरह देव प्रबोधनी एकादशी व्रत और पूजा का विधान शुरू हुआ।

देव उठानी एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराना चाहिए।
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प्राचीन काल में ऋषि मुनियों दृष्टिकोण हमेशा वैज्ञानिक और तार्किक ही होता था और ऐसे में ऋषियों को यह ज्ञान था की देवशयनी एकादशी तक भारत में लगभग सभी जगह मानसून सक्रिय हो जाता है और देवउठनी एकादशी तक मानसून समाप्त हो जाता है और ऐसे में इस दौरान दूर दराज से आने जाने के लिए घोड़े, बैलगाड़ी, रथ आदि ही साधन हुआ करते थे और रास्ते कच्चे थे और ऐसे में विवाह आदि शुभ कार्य के लिए लोगों को आने में बड़ी परेशानी होती थी इसलिए इस दौरान कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता था।

इसके अलावा इस मौसम में मच्छर, हिंसक जीव जंतु और जंगली जानवरों का प्रकोप बढ़ जाता था ऐसे में जंगलों में तपस्या करने वाले ऋषि मुनि जंगल छोड़ कर गांवों और नगरों में आ जाया करते थे और जब ये मौसम समाप्त होता था तब लोग ऋषि मुनियों को वापस तपस्या स्थलियों के लिए विदा करते थे और इनके उत्थान को ही देवोत्थान कहा जाता था। तभी से देवशयनी एकादशी पर अपने-अपने घरों को लौटना और देवोउठानी एकादशी से पुन: तपस्या स्थलियों के लिए उत्थान करना ही देवों का सोना और देवों का उठना माना जाने लगा।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की निर्णय सिन्धू की मानें तो एकादशी के अगले दिन यानि द्वादशी के दिन तुलसी विवाह करना चाहिए और इस द्वादशी को सुधा द्वादशी कहा जाता है। एकादशियों के दिन साधना की जाए तो हमारी स्मरण शक्ति और एकाग्रता वास्तव मे बढ़ सकती है, इसमे कोई संदेह नहीं है। एकादशी के दिन की गई साधना से हमे मानसिक शांति मिलती है और सोचने-समझने की क्षमता मे वृद्धि होती है। यह तिथि मास मे दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते है। इन दोने प्रकार की एकादशियों का भारतीय सनातन संप्रदाय मे बहुत महत्त्व है।
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देवोत्थान एकादशी की व्रत कथा----
पौराणिक ग्रंथों में सभी एकादशियों का अपना महत्व है। लेकिन कुछ एकादशी विशेष रूप से भाग्यशाली होती हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी भी इन्हीं विशेष एकादशियों में से एक होती है। देवोत्थान एकादशी को लेकर कई व्रत कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं
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देवोत्थान एकादशी पौराणिक कथा 1
एक बार की बात है माता लक्ष्मी ने भगवान श्री विष्णु से कहा कि प्रभु आप या तो दिन रात जागते रहते हैं या फिर लाखों करोड़ों वर्ष तक सोते रहते हैं और सृष्टि का भी विनाश कर डालते हैं। इसलिये हे नाथ आपको हर साल नियमित रूप से निद्रा लेनी चाहिये। तब श्री हरि बोले देवी आप ठीक कहती हैं। मेरे जागने का सबसे अधिक कष्ट आपको ही सहन करना पड़ता है आपको क्षण भर के लिये भी मेरी सेवा करने से फुर्सत नहीं मिलती। आपके कथनानुसार मैं अब से प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में चार मास तक के लिये शयन किया करूंगा ताकि आपको और समस्त देवताओं को भी कुछ अवकाश मिले। मेरी यह निद्रा अल्पकालीन एवं प्रलयकारी महानिद्रा कहलायेगी। मेरी इस निद्रा के दौरान जो भी भक्त भावना पूर्वक मेरी सेवा करेंगें और मेरे शयन व जागरण को उत्सव के रूप में मनाते हुए विधिपूर्वक व्रत, उपवास व दान-पुण्य करेंगें उनके यहां मैं आपके साथ निवास करूंगा।
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देवोत्थान एकादशी पौराणिक कथा  2
हमारे धार्मिक ग्रंथों में प्रत्येक एकादशी से संबंधित कथाए मौजूद हैं। देवोत्थान एकादशी के महत्व को बताने वाली इस कथा को पढ़िये।
एक बार की बात है कि एक बहुत ही धर्म पुण्य करने वाले राजा हुआ करते थे। लेकिन धर्म का दिखावा बहुत करते थे। कई बार तो अपनी प्रजा के साथ जबरदस्ती भी किया करते। एकादशी पर किसी भी घर में अन्न पकना तो दूर दुकानों पर अन्न को बेचने तक की मनाही होती थी। एकबार एक व्यक्ति उनके यहां नौकरी के लिये आया राजा ने उसके सामने शर्त रखी की वह जो भी खाने को देगा उसे उसी का आहार करना होगा। वैसे तो राजा जो कहता है वह प्रजा को मानना ही पड़ता है फिर इस शख्स को तो रोजगार की भी सख्त जरुरत थी इसलिये उसने हामी भर ली। अब वह मन लगाकर काम करता राजा भी उसके काम से प्रभावित था इसलिये उसे ठीक-ठाक भोजन भी मिलता था। एक बार एकादशी के दिन की बात है कि पूरे राज्य में अन्न ग्रहण न करने की मुनादी करवा दी। अब वह व्यक्ति कड़ा परिश्रम करता था लेकिन वह भगवान विष्णु का भक्त भी था पर उपवास उसके बस की बात नहीं थी। एकादशी के दिन राजा ने उसे फलाहार करने को कही तो उसने अन्न की मांग की अब राजा ने उससे कहा कि जो मैं तुम्हें दे रहा हूं उसी को ग्रहण करना पड़ेगा तुम्हें इसी शर्त पर यहां रखा था। पर उसने कहा महाराज आप चाहे और कुछ भी कहें पर भूख मुझसे बर्दाश्त नहीं होती। तब राजा ने उसके काम को देखते हुए उसे अन्न दे दिया। अब वह नित्य की तरह नदी किनारे जाकर अपना भोजन बनाकर भगवान का आह्वान करता है और भोग लगाने की कहता है। भगवान भी प्रकट हुए और उसके साथ भोजन कर अंतर्धान हो गये। पंद्रह दिन बाद फिर एकादशी का व्रत आया। इस बार उसने राजा से दुगूना अन्न देने की कही और कहा कि स्वंय भगवान मेरे साथ भोजन करते हैं इसलिये हम दोनों के लिये यह कम पड़ जाता है। राजा ने सोचा कि इसका मानसिक संतुलन बिगड़ा हुआ है उसे लगभग धमकाते हुए उच्च स्वर में कहा कि मुझे इतने साल हो गये उपवास और धर्म के कार्य करते हुए मुझे तो भगवान ने कभी दर्शन नहीं दिये और तेरे साथ वे भोजन करते हैं। उसने कहा महाराज मैं झूठ नहीं बोल रहा यकीन नहीं आ रहा तो आप स्वंय देख लेना। जैसे तैसे राजा ने फिर उसे भोजन दे दिया लेकिन इस बार कहा कि अगर जो तुम कह रहे हो वह सच न हुआ तो फिर इसका अंजाम भुगतने के लिये भी तैयार रहना। व्यक्ति ने जाकर भोजन पकाया और भगवान का आह्वान करने लगा। राजा भी पेड़ के पिछे से उस पर नजर रख रहा था। अब भगवान नहीं प्रकट हुए। व्यक्ति ने विवश होकर संकल्प किया कि प्रभु यदि आपने भोजन ग्रहण नहीं किया तो मैं यहीं नदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दूंगा। भगवान अब भी प्रकट नहीं हुए। वह जैसे ही दृढनिश्चय के साथ अपने प्राण त्यागने के लिये नदी की ओर बढ़ा तो भगवान प्रकट हुए और हमेशा की तरह उसके साथ भोजन करने लगे। इस सारे घटनाक्रम को देखकर राजा की समझ में आ गया कि यह सब भगवान की ही माया है वे मुझे समझाने की कोशिश कर रहे थे कि सच्ची श्रद्धा से किया गया धर्म पुण्य ही फलदायी होता है। इसके बाद राजा भी सच्ची श्रद्धा से भगवन भक्ति में लीन हो गये और अंतकाल मोक्ष प्राप्त किया।
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देवोत्थान एकादशी पौराणिक कथा 3
एक और कहानी है बात एक राजा की ही है। यह राजा बहुत ही पुण्यात्मा और श्री हरि के सच्चे भक्त थे। प्रजा सुख से रहती थी। एक बार भगवान ने इनकी परीक्षा लेने का विचार बनाया और एक सुंदर स्त्री का वेश धारण कर जिस सड़क से राजा का गुजरना होता था वहीं बैठ गये। अब उधर से गुजरते हुए जब राजा की नजरें उस स्त्री पर पड़ी तो उसे ही निहारते रह गये। उन्होंने उसके सड़क पर होने का कारण पूछा तो। स्त्री बने नारायण ने कहा कि वह निराश्रित है उसका कोई नहीं बचा है तब राजा ने उसे अपनी रानी बनने को कहा। अब राजा को अपने जाल में फंसता देखकर उसने कहा कि आपकी रानी तो मैं बन जाऊंगी लेकिन आपको अपने राज्य की बागडोर मेरे हाथों में सौंपनी होगी। जो मैं कहूंगी वही खाना पड़ेगा। रूप के आकर्षण में राजा की आंखे बंद हो चुकी थी और गर्दन थी की हां में ही हिलती जा रही थी। राजा उसे अपने राजमहल में ले आये। अगले ही दिन एकादशी का व्रत था और नई रानी ने आदेश दिया कि जैसे रोज अन्न का व्यापार और आहार होता है एकादशी को भी वैसा ही हो। राजमहल में मांसाहारी भोजन बनवाकर राजा के सामने प्रस्तुत किया। अब राजा ने कहा कि आज एकादशी है और इस दिन मैं भगवान श्री विष्णु की भक्ति में लीन रहता हूं। उपवास के दौरान केवल फलाहार ही करता हूं। अब रानी ने राजा को अपने वचन की याद दिलाई। रानी ने कहा कि मैं आपको सिर्फ एक शर्त पर ही ऐसा करने दे सकती हूं। मरता क्या न करता राजा ने रानी को शर्त बताने की कही। उसने कहा बदले में मुझे आपके बेटे का सर चाहिये। अब राजा ने कहा कि मैं बड़ी रानी से सलाह लेने के बाद ही आपको कुछ कह पाऊंगा। अपने धर्म पर आन खड़े हुए इस संकट के बारे में जब राजा ने बड़ी रानी को यह सब बताया तो उसने कहा कि भगवान ने चाहा तो पुत्र ओर मिल जायेगा लेकिन अपना धर्म भ्रष्ट कर लिया तो फिर कहीं कोई ठोर नहीं। रानी रोने लगी कि तभी शिकार खेल कर लौटे राजकुमार ने अपनी माता से रोने का कारण पूछा। उसने सारा वृतांत अपने बेटे को भी कह सुनाया। पिता के धर्म की रक्षा के लिये लड़का भी अपने बलिदान के लिये तैयार हो गया। अब धर्म को लेकर पूरे परिवार की निष्ठा को देखते हुए भगवान श्री हरि भी अपने वास्तिविक रूप में आये और राजा से वर मांगने को कहा। राजा ने कहा प्रभु आपका दिया सब कुछ है बस हमारा उद्धार करें। तब अपने राजपाट की बागडोर पुत्र के हाथों सौंपकर वह भगवान विष्णु के साथ बैकुंठ प्रस्थान कर गये।
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तुलसी विवाह-------------

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की देव उठनी एकादशी के दिन ही भगवान श्री हरि के शालीग्राम रूप का विवाह तुलसी के साथ किया जाता है। तुलसी को विष्णुप्रिया भी कहा जाता है। मान्यता है कि जब श्री हरि जागते हैं तो वे पहली प्रार्थना हरिवल्लभा तुलसी की ही सुनते हैं। दरअसल यहां तुलसी के माध्यम से श्री हरि का आह्वान किया जाता है। अपने जीवन को उल्लासमय बनाने और परमानंद की प्राप्ति के लिये तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। मान्यता तो यह भी है कि जिन दंपतियों की संतान नहीं होती उन्हें एक बार तुलसी का विवाह कर कन्यादान अवश्य करना चाहिये। असल में तुलसी को जड़ रूप होने का श्राप मिला था जिसकी अलग-अलग पौराणिक कहानियां भी मिलती हैं। 
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देव उठनी एकादशी व्रत पूजा विधि------

इस एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर सर्वप्रथम नित्यक्रिया से निपट कर स्नानादि कर स्वच्छ हो लेना चाहिये। स्नान किसी पवित्र धार्मिक तीर्थ स्थल, नदी, सरोवर अथवा कुंए पर किया जाये तो बहुत बेहतर अन्यथा घर पर भी स्वच्छ जल से किया जा सकता हैं। स्नानादि के पश्चात निर्जला व्रत का संकल्प लेकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिये। सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिये। इस दिन संध्या काल में शालिग्राम रूप में भगवान श्री हरि का पूजन किया जाता है। तुलसी विवाह भी इस दिन संपन्न करवाया जाता है। हालांकि वर्तमान में तुलसी का विवाह अधिकतर द्वादशी के दिन करवाते हैं। रात्रि में प्रभु का जागरण भी किया जाता है। व्रत का पारण द्वादशी के दिन प्रात: काल ब्राह्मण को भोजन करवायें व दान-दक्षिणा देकर विदा करने के बाद किया जाता है। शास्त्रों में व्रत का पारण तुलसी के पत्ते से भी करने का विधान है।

इस दिन द्राक्ष, ईख, अनार, केला, सिंघाड़ा आदि ऋतुफल भगवान विष्णु को अर्पण करना चाहिए। इसके बाद पादोदक (चरणामृत) ग्रहण करना चाहिए।

चरणामृत के महत्व के बारे में कहा गया है- 'अकालमृत्युहरणम् सर्वव्याधिविनाशनम्, विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।' अर्थात चरणामृत अकाल मृत्यु से रक्षा करता है, सभी रोगों का  नाश करता है। विष्णु जी का चरणामृत पीने से पुनर्जन्म नहीं होता। मान्यता है कि पादोदक हमारे लिए औषधि के समान है। पूजा के समय ताम्रपात्र में शालिग्राम का गंगाजल से पुरुष सूक्त के 16 मंत्रों के साथ अभिषेक किया जाता है। उसमें तुलसी दल, केशर, चंदन आदि का मिश्रण होता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की एकादशी का व्रत तीन दिन में संपन्न करने का विधान विष्णु पुराण और नारद संहिता में विस्तार से बताया गया है। इस व्रत में दशमी के दिन एकासन व्रत, एकादशी को अन्न परित्याग व्रत और द्वादशी को पुन: एकासन व्रत कर पारण किया जाता है। जो ऐसा नहीं कर सकते, उनके लिए फलाहार का भी विधान शास्त्रों में दिया गया है। पूजन के अंत में 'ऊं भूत वर्तमान समस्त पाप निवृत्तय-निवृत्तय फट्'  मंत्र की 21 माला जाप कर अग्नि में शुद्ध घी की 108 आहुतियां अवश्य देनी चाहिए। इससे जीवन के सारे रोगों, कष्टों व चिंताओं से मुक्ति मिल जाती है। जीवन में कल्याण ही कल्याण होगा।

इस शुभ दिन मंदिरों व घरों मे विशेष पूजा अर्चना की जाती है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शंख की तेज ध्यनि से भगवान को जगाया जाता है साथ ही उन्हे नए वस्त्र पहनाए जाते है। शनिवार को पड़ने वाली देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान की आराधना को सनातन धर्म मे आस्था रखने वाले लोगों ने विशेष तैयारियां की है। मान्यता है कि भगवान विष्णु का इस दिन किया गया पूजन शुभ, सिद्धिदायक और सौभाग्य मे वृद्धि करने वाला होता है। इसल‌िए परलोक मे उत्तम गत‌ि की इच्छा रखने वाले इस द‌िन भगवान व‌िष्‍णु के ल‌िए व्रत रखते है। इस एकादशी को लेकर ऐसी मान्यता भी है क‌ि इसद‌िन देवतागण भी भगवान व‌िष्‍णु के पास पहुंचकर उनके दर्शन का लाभ पाते है और व्रत पूजन करते है। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु चार महिनों की नींद से जागते है। इसे देवोत्थापनी या देवउठनी एकादशी भी कहते है।

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि असुर मधुकेटव भगवान ब्रह्मा जी से युद्ध लड़ने चल देता है। बृह्मा जी सहित सभी देवता परेशान हो जाते है और वे क्षीर सागर मे सो रहे भगवान विष्णु की स्तुति करते है। भगवान विष्णु कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को जागते है और जिसके बाद वे असुर का अंत करते है।
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जानिए देव उठनी पूजा विधि----
सुबह उठ कर सन्नान करें
पूजा स्थल को साफ करें
विष्णु भगवान की प्रतिमा स्थापित करें
धूप और दीप अर्पित करें
दिन में जब धूप आए तो भगवान विष्णु के चरण ढंक दें
रात के वक्त कथा करें |
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इस मंत्र का उच्चारण करें-
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं : 

'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'

इस बार देवप्रबोधिनी एकादशी का पर्व 11 नवंबर,2016 (शुक्रवार) को है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का पूजन इस विधि से करे –

यह हैं पूजन विधि ---

हिंदू शास्त्रो के अनुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी को पूजा-पाठ, व्रत-उपवास किया जाता है। इस तिथि को रात्रि जागरण भी किया जाता है। देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गंध, चंदन, फल और अध्र्य आदि अर्पित करे। भगवान की पूजा करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्य यंत्रो के साथ निम्न मंत्रो का जाप करे-

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां जगत्पते।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।

इसके बाद भगवान की आरती करे और पुष्पांजलि अर्पण करके निम्न मंत्रो से प्रार्थना करे-

इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।।
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।

विष्णु पूजा या पंचदेव पूजा विधान अथवा रामार्चनचन्द्रिका आदि के अनुसार श्रद्धापूर्वक पूजन तथा दीपक, कपूर आदि से आरती करे।

इसके बाद इस मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करे ---

'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥'

ततपश्चात इस मंत्र से प्रार्थना करे ---

'इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥'

ततपश्चात इस मंत्र से प्रार्थना करे ---

'इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना॥'
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन॥'

एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते है। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे है उन्हे व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणो की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने मे सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।
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जानिए देव उठनी एकादशी व्रत के लाभ---

जो इंसान इस दिन व्रत रखता है उसे कई तीर्थ दर्शन और हजार अश्वमेघ यज्ञ करने का फायदा मिलता है।
इंद्रियों पर विजय पाने के लिए भी यह व्रत किया जाता है।
इस दिन की व्रत की कथा सुनने से 100 गायों के दान के बराबर फल मिलता है।
इस दिन व्रत करने से आपकी सारी मनोकामना पूरी होती है।
देव उठनी एकादशी का व्रत करने से इंसान को मरने के बाद मोक्ष मिलता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की देव उठनी एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है ।
श्रीमान जी, धन्यवाद..

Thank you very much .



पंडित दयानन्द शास्त्री,
(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)


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