वैभव लक्ष्मी स्तुति---
श्वेताम्बरधरे देवि
नानालङ्कारभूषिते।
जगत्सि्थते
जगन्मातर्महालक्ष्मी
नमोस्तु ते॥
अर्थ: हे देवि तुम श्वेत
वस्त्र धारण करने वाली और
नाना प्रकार के आभूषणों से
विभूषित हो। सम्पूर्ण जगत्
में व्याप्त एवं अखिल लोक को
जन्म देने वाली हो। हे
महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा
प्रणाम है॥
महालक्ष्म्यष्टकं
स्तोत्रं य: पठेद्भक्ति
मान्नर:।
सर्वसिद्धिमवापनेति
राज्यं प्रापनेति सर्वदा॥
अर्थ: जो मनुष्य भक्ति युक्त
होकर इस महालक्ष्म्यष्टक
स्तोत्र का सदा पाठ करता है,
वह सारी सिद्धियों और
राज्यवैभव को प्राप्त कर
सकता है
एककाले पठेन्नित्यं
महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं
धनधान्यसमन्वित:॥
अर्थ: जो प्रतिदिन एक समय पाठ
करता है, उसके बड़े-बड़े
पापों का नाश हो जाता है। जो
दो समय पाठ करता है, वह
धन-धान्य से सम्पन्न होता
है॥
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं
महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं
प्रसन्ना वरदा शुभा॥
अर्थ: जो प्रतिदिन तीन काल
पाठ करता है उसके महान्
शत्रुओं का नाश हो जाता है और
उसके ऊपर कल्याणकारिणी
वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही
प्रसन्न होती हैं॥
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लक्ष्मी प्राप्ति के लिए
गणेश स्तोत्र---
ॐ नमो विघ्नराजाय
सर्वसौख्याप्रदयिने।
द्रष्टारिष्टविनाशाय पराय
परमात्मने ॥
लम्बोदरं महावीर्य
नाग्यग्योपशोभितम।
अर्ध्चन्द्रधरम देव विघ्न
व्यूह विनाशनम॥
ॐ ह्रां, ह्रीं, ह्रूं ह्रे
ह्रौं ह्रं : हेरम्बाय नमो
नमः। सर्व्सिद्धिप्रदोसि
त्वं सिद्धिबुद्धि प्रदो भव
॥
चिन्तितार्थ्प्रदस्तव हि,
सततं मोदकप्रिय : ।
सिंदुरारून वस्त्रेस्च
पूजितो वरदायकः ॥
इदं गणपति स्तोत्रं यः पठेद
भक्तिमान नरः । तस्य देहं च
गेहं च स्वयं लक्ष्मिर्ण
मुंचति ॥
ऊपर गणेश लक्ष्मी स्तोत्र
पाठ करे .. अवश्य ही
लाभान्वित होंगें |
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लक्ष्मी प्राप्ति का अचूक
स्तोत्र---कनकधारा स्तोत्र
जीवन में आर्थिक तंगी को
लेकर हम सभी बेहद परेशान
रहते हैं। धन प्राप्ति के
लिए हरसंभव श्रेष्ठ उपाय
करना चाहते हैं। धन
प्राप्ति और धन संचय के लिए
कनकधारा स्तोत्र का पाठ
करने से चमत्कारिक रूप से
लाभ प्राप्त होता है।
कनकधारा स्तोत्र की विशेषता
यही है कि यह किसी भी प्रकार
की विशेष माला, जाप, पूजन,
विधि-विधान की मांग नहीं
करता बल्कि सिर्फ दिन में एक
बार इसको पढ़ना पर्याप्त
है।
ऐसा कहा जाता है कि एक बार
अद्वैत मत के जनक आदि
शंकराचार्य भोजन की तलाश
में इधर-उधर भटक रहे थे। एक
महिला की नजर भिक्षा मांगते
हुए उस बालक पर गई। उस महिला
को बालक के प्रति अजीब सा
खिंचाव महसूस हुआ। वह
स्त्री बहुत निर्धन थी, उस
बालक को कुछ भी अच्छा भोजन के
लिए नहीं दे सकती, उस समय उसे
अपने दुर्भाग्य पर बहुत
क्रोध आ रहा था।
आदि शंकराचार्य ने उस
स्त्री से कहा कि जो भी उनके
पास हैं, भले ही बहुत कम,
लेकिन वह पर्याप्त है। उस
स्त्री ने एकादशी का व्रत
रखा हुआ था और उसके पास एक
बेर के अलावा व्रत खोलने के
लिए और कुछ नहीं था। उसने वह
बेर भी शंकराचार्य के पात्र
में डाल दिया। शंकराचार्य
जी को उस स्त्री की ऐसी दशा
पर बड़ी दया आई और उन्होंने
वही खड़े खड़े माता
महालक्ष्मी की स्तुति की,
जिससे माता इतनी प्रसन्न
हुई कि उस स्त्री के घर में
धन की वर्षा होने लगी। वही
स्तुति, माता महालक्ष्मी का
कनक धारा स्तोत्र कहा जाता
है।
ऐसा कहा जाता है कि जो भी
सच्चे मन और श्रद्धा से साथ
नियमित तौर पर विशेषकर
शुक्रवार के दिन कनकधारा
स्तोत्र का जाप करता है, माता
लक्ष्मी उसके जीवन से धन
संबंधी परेशानियों को हर
लेती हैं।
।। श्री कनकधारा स्तोत्रम्
।।
अङगं हरेः
पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङगाङगनेव
मुकुलाभरणंतमालम्।
अङगीकृताखिलविभूतिरपाङगलीला
माङगल्यदाऽस्तु मम
मङगलदेवतायाः।। १।।
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने
मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि
गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकरीव
महोत्पले या सा मे श्रियं
दिशतु सागरसम्भवायाः।। २।।
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्दहेतुरधिकं
मुरविद्विषोऽपि।
ईषन्निषीदतु मयि
क्षणमीक्षणार्धमिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः
।। ३।।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा
मुकुन्दमानन्दकन्दमनिमेषमनङगतन्त्रम्।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम
भुजङगशयाङगनायाः।। ४।।
बाह्नन्तरे मधुजितः
श्रितकौस्तुभे या हारावलीव
हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोऽपि
कटाक्षमाला कल्याणमावहतु
मे कमलालयायाः।। ५।।
कालाम्बुदालिललितोरसि
कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति
या तडिदङगनेव।
मातुः समस्तजगतां
महनीयमूर्तिर्भद्राणि मे
दिशतु भार्गवनन्दनायाः।।
६।।
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल
यत्प्रभावान्माङगल्यभाजि
मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह
मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च
मकरालयकन्यकायाः।। ७।।
दद्याद दयानुपवनो
द्रविणाम्बुधारामस्मिन्नकिंचनविहङगशिशौ
विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय
दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः।।
८।।
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया
दयार्द्रदृष्ट्या
त्रिविष्टपपदं सुलभं
लभन्ते।
दृष्टिः
प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम
पुष्करविष्टरायाः।। ९।।
गीर्देवतेति
गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति
शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु
संस्थितायै तस्यै
नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै।।
१०।।
श्रुत्यै नमोऽस्तु
शुभकर्मफलप्रसूत्यै रत्यै
नमोऽस्तु
रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु
शतपत्रनिकेतनायै पुष्ट्यै
नमोऽस्तु
पुरुषोत्तमवल्लभायै।।
११।।
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु
दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु
नारायणवल्लभायै।। १२।।
सम्पत्काराणि
सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि
सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि
दुरिताहरणोद्यतानि मामेव
मातरनिशं कलयन्तु मान्ये।।
१३।।
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति
वचनाङगमानसैस्त्वां
मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।
१४।।
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद
मह्यम्।। १५।।
दिग्घस्तिभिः
कनककुम्भमुखावसृष्टस्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङगीम्।
प्रातर्नमामि जगतां
जननीमशेषलोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम्।।
१६।।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूरतरङिगतैरपाङगैः।
अवलोकय मामकिंचनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं
दयायाः।। १७।।
स्तुवन्ति ये
स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं
रमाम्।
गुणाधिका
गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति
ते भुवि बुधभाविताशयाः।।
१८।।
स्वर्णधारा स्त्रोतं
यच्छंकराचार्य
विर्निमितम।
त्रिःसन्ध्यंयः
पठेन्नित्यं स कुबेर समो
भवेन्नरः।। १९।।
इति श्रीकनकधारा
लक्ष्मीस्तोत्रम्
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