(रविवार) 2017 को क्यों और कैसे मनाएं

जानिए करवा चौथ 08 अक्टूबर, (रविवार) 2017 को क्यों और कैसे मनाएं (करवा चौथ 2017 का मुहूर्त)




जानिए करवा चौथ 08 अक्टूबर, (रविवार)  2017 को क्यों और कैसे मनाएं (करवा चौथ 2017 का मुहूर्त) ---

प्रिय पाठकों /मित्रों हमारे देश में हिन्दू पंचांगानुसार कार्तिक महीना में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत मनाया जाता है। इस वर्ष करवा चौथ का व्रत 08 अक्टूबर 2017 (रविवार) को मनाया जाएगा। करवा चौथ और संकष्टी चतुर्थी ये दोनों व्रत एक ही दिन मनाया जाता है। संकष्टी चतुर्थी गणेश जी को खुश करने के लिए किया जाता है। भारतीय हिन्दू पंचांगानुसार यह पर्व कार्तिक महीना की कृष्ण पक्ष की चौथी तिथि को मनाया जाता है। करवा चौथ को "करक चतुर्थी"भी कहा जाता है। करवा चौथ का व्रत विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु तथा प्रेम सम्बन्ध  के स्थायित्व करने के लिए करती है। छांदोग्य उपनिषद् के अनुसार चंद्रमा में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस दिन विवाहित स्त्रियां भगवान शिव जीमाता पार्वती और कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान गणेश की पूजा करती हैं। अपने व्रत को चन्द्रमा को देखकर और अर्घ अर्पण करने के बाद अपने पति को जल पिलाती है तत्पश्चात अपना व्रत तोड़ती हैं।इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ के व्रत का पूर्ण विवरण  वामन पुराण में किया गया है।चाँद देखे बिनायह माना जाता है कि व्रत अधूरा है और कोई महिला न कुछ भी खा सकती हैं और न पानी पी सकती हैं। करवा चौथ व्रत तभी पूरा माना जाता है जब महिला उगते हुये पूरे चाँद को छलनी में घी का दिया रखकर देखती है और चन्द्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति के हाथों से पानी पीती है।

करवा चौथ का व्रत कार्तिक हिन्दु माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दौरान किया जाता है। अमांत पञ्चाङ्ग जिसका अनुसरण गुजरातमहाराष्ट्रऔर दक्षिणी भारत में किया जाता हैके अनुसार करवा चौथ अश्विन माह में पड़ता है। हालाँकि यह केवल माह का नाम है जो इसे अलग-अलग करता है और सभी राज्यों में करवा चौथ एक ही दिन मनाया जाता है। करवा चौथ व्रत विशेष रूप से उत्तर प्रदेशपंजाबराजस्थानबिहार और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है। 'करवा चौथअब केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में रहने वाली भारतीय मूल की स्त्रियों द्वारा भी पूर्ण श्रद्धा से किया जाता है।

करवा चौथ का दिन और संकष्टी चतुर्थीजो कि भगवान गणेश के लिए उपवास करने का दिन होता हैएक ही समय होते हैं। विवाहित महिलाएँ पति की दीर्घ आयु के लिए करवा चौथ का व्रत और इसकी रस्मों को पूरी निष्ठा से करती हैं। विवाहित महिलाएँ भगवान शिवमाता पार्वती और कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान गणेश की पूजा करती हैं और अपने व्रत को चन्द्रमा के दर्शन और उनको अर्घ अर्पण करने के बाद ही तोड़ती हैं। करवा चौथ का व्रत कठोर होता है और इसे अन्न और जल ग्रहण किये बिना ही सूर्योदय से रात में चन्द्रमा के दर्शन तक किया जाता है।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार करवा चौथ के दिन करवा वा करक का विशेष महत्त्व होता है। करवा अथवा करक का अर्थ होता है मिट्टी से बना हुआ पात्र। इस व्रत में चन्द्रमा को अर्घ्य (जल अर्पण) मिट्टी से बने हुए पात्र से ही देने का विधान है। इसी कारण इस पूजा में "करवाका विशेष महत्त्व हो जाता है पूजा के बाद इस करवा को या तो अपने ही घर में संभालकर रखना चाहिए या किसी ब्राह्मण अथवा योग्य स्त्री को दान  में दे देना चाहिए।

दरअसल करवा चौथ मन के मिलन का पर्व है. इस पर्व पर महिलाएं दिनभर निर्जल उपवास रखती हैं और चंद्रोदय में गणेश जी की पूजा-अर्चना के बाद अर्घ्य देकर व्रत तोड़ती हैं।  व्रत तोड़ने से पूर्व चलनी में दीपक रखकरउसकी ओट से पति की छवि को निहारने की परंपरा भी करवा चौथ पर्व की है। । इस दिन बहुएं अपनी सास को चीनी के करवेसाड़ी व श्रृंगार सामग्री प्रदान करती हैं। पति की ओर से पत्‍‌नी को तोहफा देने का चलन भी इस त्यौहार में है। 

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जो उपवास किया जाता है उसका सुहागिन स्त्रियों के लिये बहुत अधिक महत्व होता है। दरअसल इस दिन को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन यदि सुहागिन स्त्रियां उपवास रखें तो उनके पति की उम्र लंबी होती है और उनका गृहस्थ जीवन सुखद होने लगता है। हालांकि पूरे भारतवर्ष में हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग बड़ी धूम-धाम से इस त्यौहार को मनाते हैं लेकिन उत्तर भारत खासकर पंजाबहरियाणाराजस्थानउत्तर प्रदेशमध्यप्रदेश आदि में तो इस दिन अलग ही नजारा होता है। 

करवाचौथ व्रत के दिन एक और जहां दिन में कथाओं का दौर चलता है तो दूसरी और दिन ढलते ही विवाहिताओं की नज़रें चांद के दिदार के लिये बेताब हो जाती हैं। चांद निकलने पर घरों की छतों का नजारा भी देखने लायक होता है। दरअसल सारा दिन पति की लंबी उम्र के लिये उपवास रखने के बाद आसमान के चमकते चांद का दिदार कर अपने चांद के हाथों से निवाला खाकर अपना उपवास खोलती हैं। करवाचौथ का व्रत सुबह सूर्योदय से पहले ही बजे के बाद शुरु हो जाता है और रात को चंद्रदर्शन के बाद ही व्रत को खोला जाता है। इस दिन भगवान शिवमाता पार्वती और भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है और करवाचौथ व्रत की कथा सुनी जाती है। सामान्यत: विवाहोपरांत 12 या 16 साल तक लगातार इस उपवास को किया जाता है लेकिन इच्छानुसार जीवनभर भी विवाहिताएं इस व्रत को रख सकती हैं। माना जाता है कि अपने पति की लंबी उम्र के लिये इससे श्रेष्ठ कोई उपवास अतवा व्रतादि नहीं है।
===============================================================================
करवा चौथ व्रत की पूजन सामग्री----

कुंकुमशहदअगरबत्तीपुष्पकच्चा दूधशक्करशुद्ध घीदहीमेंहदीमिठाईगंगाजलचंदनचावलसिन्दूरमेंहदीमहावरकंघाबिंदीचुनरीचूड़ीबिछुआमिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कनदीपकरुईकपूरगेहूँशक्कर का बूराहल्दीपानी का लोटागौरी बनाने के लिए पीली मिट्टीलकड़ी का आसनछलनीआठ पूरियों की अठावरीहलुआदक्षिणा के लिए पैसे।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार सम्पूर्ण सामग्री को एक दिन पहले ही एकत्रित कर लें। व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहन लें तथा शृंगार भी कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का  विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।
===============================================================================
शिव-पार्वती की पूजा का विधान---

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की करवा चौथ  व्रत वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान कर स्वच्छ कपड़े पहनकर श्रृंगार कर लें। इस अवसर पर करवा की पूजा-आराधना कर उसके साथ शिव-पार्वती की पूजा का विधान है क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था इसलिए शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का धार्मिक और ज्योतिष दोनों ही दृष्टि से महत्व है। व्रत के दिन प्रातरू स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोल कर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें।

व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-

'मम सुख सौभाग्य पुत्र-पौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'

पूरे दिन निर्जला रहें। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा मांडें। इसे 'वरकहते हैं। चित्रित करने की कला को 'करवा धरनाकहा जाता है।
पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं। पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं। गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें। जल से भरा हुआ लोटा रखें। वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें।

करवा में गेहूं और ढक्कन में शकर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवे पर स्वस्तिक बनाएं। गौरी-गणेश और चित्रित करवे की परंपरानुसार पूजा करें।

पति की दीर्घायु की कामना कर पढ़ें यह मंत्र : -

'नमस्त्यै शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभा। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे।'

करवे पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवे पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। 13 दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें। इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें। पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।
================================================================================
जानिए क्या रखें करवा चौथ व्रत में सावधानियां --

----केवल सुहागिनें या जिनका रिश्ता तय हो गया हो वही स्त्रियां ये व्रत रख सकती हैं।
----व्रत रखने वाली स्त्री को काले और सफेद कपड़े कतई नहीं पहनने चाहिए।
----करवा चौथ के दिन लाल और पीले कपड़े पहनना विशेष फलदायी होता है।
----करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से चंद्रोदय तक रखा जाता है।
---ये व्रत निर्जल या केवल जल ग्रहण करके ही रखना चाहिए।
----इस दिन पूर्ण श्रृंगार और अच्छा भोजन करना चाहिए।
----पत्नी के अस्वस्थ होने की स्थिति में पति भी ये व्रत रख सकते हैं।
================================================================================
यह हैं करवा चौथ पूजन विधि----

नारद पुराण के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। करवा चौथ की पूजा करने के लिए बालू या सफेद मिट्टी की एक वेदी बनाकर भगवान शिव- देवी पार्वतीस्वामी कार्तिकेयचंद्रमा एवं गणेशजी को स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें। पूजन के समय निम्न मन्त्र- ''मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये। सांयकाल के समयमाँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें लकड़ी के आसार पर बिठाए। मां पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें। भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और करवे में पानी भरकर पूजा करें। सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन र्निजला व्रत रखकर कथा का श्रवण करें। तत्पश्चात चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें।
=============================================================================
करवा चौथ पूजन विधि---
प्रात: काल में नित्यकर्म से निवृ्त होकर संकल्प लें और व्रत आरंभ करें।
व्रत के दिन निर्जला रहे यानि जलपान ना करें।
व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें-
प्रातः पूजा के समय इस मन्त्र के जप से व्रत प्रारंभ किया जाता है- 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'
घर के मंदिर की दीवार पर गेरू से फलक बनाकर चावलों को पीसे। फिर इस घोल से करवा चित्रित करें। इस रीती को करवा धरना कहा जाता है।
शाम के समयमाँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें लकड़ी के आसार पर बिठाए।
माँ पार्वती का सुहाग सामग्री आदि से श्रृंगार करें।
भगवान शिव और माँ पार्वती की आराधना करें और कोरे करवे में पानी भरकर पूजा करें।
सौभाग्यवती स्त्रियां पूरे दिन का व्रत कर व्रत की कथा का श्रवण करें।
सायं काल में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही पति द्वारा अन्न एवं जल ग्रहण करें।
पतिसास-ससुर सब का आशीर्वाद लेकर व्रत को समाप्त करें।

पूजा के बाद करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए तथा चंद्रमा को अर्घ्य देकर छलनी से अपने पति को देखना चाहिए। पति के हाथों से ही पानी पीकर व्रत खोलना चाहिए। इस प्रकार व्रत को सोलह या बारह वर्षों तक करके उद्यापन कर देना चाहिए। पूजा की कुछ अन्य रस्मों में सास को बायना देनामां गौरी को श्रृंगार का सामान अर्पित करना आदि शामिल है। 
===============================================================================
करवा चौथ का महत्त्व --

करवा चौथ की अन्य कई कहानियां भी प्रचलित हैं किन्तु इस कथा का जिक्र शास्त्रों में होने के कारण इसका आज भी महत्त्व बना हुआ है।
द्रोपदी द्वारा शुरू किए गए करवा चौथ व्रत की आज भी वही मान्यता है। द्रौपदी ने अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखा था और निर्जल रहीं थीं। यह माना जाता है कि पांडवों की विजय में द्रौपदी के इस व्रत का भी महत्व था।

महाभारत से संबंधित पौराणिक कथा के अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं। दूसरी ओर बाकी पांडवों पर कई प्रकार के संकट आन पड़ते हैं। द्रौपदी भगवान श्रीकृष्ण से उपाय पूछती हैं। वह कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवाचौथ का व्रत करें तो इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है। द्रौपदी विधि विधान सहित करवाचौथ का व्रत रखती है जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इस प्रकार की कथाओं से करवा चौथ का महत्त्व हम सबके सामने आ जाता है।
===============================================================================
जानिए करवा चौथ की प्रचलित  व्रत कथा---

एक समय की बात हैसात भाइयों की एक बहन का विवाह एक राजा से हुआ। विवाहोपरांत जब पहला करवा चौथ आयातो रानी अपने मायके आ गयी। रीति-रिवाज अनुसार उसने करवा चौथ का व्रत तो रखा किन्तु अधिक समय तक व भूख-प्यास सहन नहीं कर पर रही थी और चाँद दिखने की प्रतीक्षा में बैठी रही। उसका यह हाल उन सातों भाइयों से ना देखा गयाअतः उन्होंने बहन की पीड़ा कम करने हेतु एक पीपल के पेड़ के पीछे एक दर्पण से नकली चाँद की छाया दिखा दी। बहन को लगा कि असली चाँद दिखाई दे गया और उसने अपना व्रत समाप्त कर लिया। इधर रानी ने व्रत समाप्त किया उधर उसके पति का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। यह समाचार सुनते ही वह तुरंत अपने ससुराल को रवाना हो गयी।
रास्ते में रानी की भेंट शिव-पार्वती से हुईं। माँ पार्वती ने उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है और इसका कारण वह खुद है। रानी को पहले तो कुछ भी समझ ना आया किन्तु जब उसे पूरी बात का पता चला तो उसने माँ पार्वती से अपने भाइयों की भूल के लिए क्षमा याचना की। यह देख माँ पार्वती ने रानी से कहा कि उसका पति पुनः जीवित हो सकता है यदि वह सम्पूर्ण विधि-विधान से पुनः करवा चौथ का व्रत करें। तत्पश्चात देवी माँ ने रानी को व्रत की पूरी विधि बताई। माँ की बताई विधि का पालन कर रानी ने करवा चौथ का व्रत संपन्न किया और अपने पति की पुनः प्राप्ति की।
================================================================================
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ के दिन शाम के समय चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। इस दिन बिना चन्द्रमा को अर्घ्य दिए व्रत तोड़ना अशुभ माना जाता है। करवा चौथ मूर्हूत पंचांग आधारित वह सटीक समय होता है जिसकेअंदर/उसी समयावधि में ही पूजा करनी होती है। वर्ष 2017 में पूजा और चन्द्रमा निकलने का समय निम्न है: ---

08 अक्टूबर, (रविवार)  2017 को करवा चौथ चंद्र दर्शन समय – 20:14 मिनट रात्रि पर 

करवा चौथ पूजा महूर्त –        17:55 से 19: 09 तक, (दिल्ली का समय)
करवा चौथ तिथि          :          08 अक्टूबर 2017, रविवार
करवा चौथ पूजा शुभ मुहूर्त  :      17:55 से 19:09
चंद्रोदय समय             :            रात्रि  20:14 बजे
चतुर्थी तिथि प्रारंभ         :           16:58 (8 अक्तूबर 2017)
चतुर्थी तिथि समाप्त        :         14:16 (9 अक्तूबर 2017)
=============================================================================
उज्जैन (मध्यप्रदेश ) में करवा चौथ पूजन का शुभ मुहूर्त--

करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय होगा 
करवा चौथ पूजा मुहूर्त = १८:२४ से १९:४१
अवधि = १ घण्टा १७ मिनट्स
करवा चौथ के दिन चन्द्रोदय = २०:४७
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ = ८/अक्टूबर/२०१७ को ०७:२८ बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त = ९/अक्टूबर/२०१७ को ०४:४६ बजे
==========================================================================

About amitsingh

0 comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.