जानिए कैसे निकाला जाये विवाह का मुहूर्त..??
विवाह मुहूर्त में किन-किन दोषों पर विचार किया जाना चाहिए?
आवश्यक होने पर इनमें से किन दोषों का परिहार उपायों द्वारा किया जा सकता है तथा वे उपाय कौन से हैं?
क्या इन उपायों के पश्चात् वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है?
खबर/न्यूज---सही विवाह नही मिलान होने से वर ने आत्महत्या कर ली ???!!
प्रिय
पाठकों/मित्रों, विवाह के लिए पंड़ितों द्वारा शुभ मुहूर्त निकाला जाता है।
आपके घर में किसी के विवाह की तारीख तय करनी है, आप अगर चाहें तो बिना
किसी पंड़ित के पास जाए स्वयं विवाह का शुभ मुहूर्त निकाल सकते हैं। विवाह
का शुभ मुहूर्त निकालने की प्रक्रिया इस प्रकार है....
जिन लोगों
को वास्तव मे कतई ज्योतिष की जानकारी नही है वे आसानी से वर-कन्या के गुण
दोष बताने लगते है इस प्रकार से कितने अर्थ के अनर्थ हो जाते है
आज
कम्पयूटर का जमाना है जिसे देखो अपने अपने कम्पयूटर में कोई न कोई
सोफ़्टवेयर ज्योतिष वाला डालकर बैठा है,जैसे ही किसी भी वर कन्या की विवाह
वाली बात की जाती है सीधे से वर और कन्या की जन्म तारीख समय आदि के साथ
कुंडली बना ली जाती है और उन्हे सीधे से विवाह मिलान के लिये देखा जाता है,
गुण चक्र नाडी दोष और भकूट दोष आसानी से कम्पयूटर का सोफ़्टवेयर निकाल कर दे देता है,
मंगल चाहे वक्री हो अस्त हो कम डिग्री का हो उसे मंगली दोष लगाते देर नही लगती है,
चन्द्रमा चाहे बाल हो वृद्ध हो अस्त हो नीच हो उसे राशि मिलान करते देर नही लगती है,
कन्या
का गुरु बल चाहे बहुत ही कमजोर हो वर का सूर्य बल चाहे बिलकुल ही नही
मिलता हो लेकिन कम्पयूटर के अनुसार गुण चक्र बताने मे कतई देर नही लगती है
और फ़टाफ़ट फ़ैसला भी हो जाता है,चाहे दोनो का चन्द्र बल बहुत ही अच्छा हो।
इस
प्रकार से कितने अर्थ के अनर्थ हो जाते है जिन लोगों को वास्तव मे कतई
ज्योतिष की जानकारी नही है वे आसानी से वर-कन्या के गुण दोष बताने लगते है
और जब उनसे कोई बात पूँछी जाती है तो वे अपने गुण को सर्वोच्च बताने की आशा
मे अपने अनाप सनाप वाचाली नीति को अपनाने लगते है।
मूल अनुराधा
मृगशिरा रेवती हस्त उत्तराफ़ाल्गुनी उत्तराषाढा उत्तराभाद्रपत स्वाति मघा
रोहिणी इन नक्षत्रो मे और ज्येष्ठ माघ फ़ाल्गुन बैशाख मार्गशीर्ष आषाढ इन
महीनो मे विवाह करना शुभ है। विवाह का सामान्य दिन पंचांग मे लिखा रहता है
अत: पांचांग के लिये दिन को लेकर उस दिन वर कन्या के लिये यह विचार करना
कन्या के लिये गुरुबल वर के लिये सूर्य बल दोनो के लिये चन्द्रबल देख लेना
चाहिये।
गुरुबल विचार:-गुरु कन्या की राशि से नवम एकादश द्वितीय
और सप्तम राशि मे शुभ होता है दसम तृतीय छठा और प्रथम राशि मे दान देने से
शुभ और चौथे आठवे बारहवी राशि मे अशुभ होता है।
सूर्य बल विचार:-
सूर्य वर की राशि से तीसरा छठा दसवा ग्यारहवा शुभ होता है,दूसरा पांचवा
सातवा और नवां दान देने से शुभ माना जाता है,चौथा आठवां बारहवां सूर्य अशुभ
होता है।
चन्द्रबल विचार:- चन्द्रमा वर और कन्या की राशि से
तीसरा छठा सातवां दसवा ग्यारहवां शुभ पहला दूसरा पांचवां नौवां दान से शुभ
और चौथा आठवां बारहवां अशुभ होता है।
विवाह मे त्यागने वाली
लगनें:- दिन मे तुला वृश्चिक और रात्रि में मकर राशि बधिर है,दिन मे सिंह
मेष वृष और रात्रि में कन्या मिथुन कर्क अन्धी है,दिन मे कुंभ और रात्रि मे
मीन दोनो लगने पंगु है,सिंह मेष वृष मकर कुम्भ मीन ये लगन सुबह और शाम के
समय कुबडे होते है.
त्यागने वाली लगनों का फ़ल:- अगर विवाह बधिर
लगन मे होता है तो वर कन्या चाहे कुबेर के खजाने से लदे हुये जाये लेकिन
दरिद्र हो जायेंगे,दिन की अन्धी लगनो मे विवाह किया जाता है तो कन्या को वर
से दूरी मिलनी ही है,रात्रि की अन्धी लगन मे विवाह होता है तो संतति होने
का सवाल ही नही होता है और होती भी है तो जिन्दा नही रहती है,लगन पंगु होती
है तो धन नाश और परिवार की मर्यादा का नाश होने लगता है।
लगन
शुद्धि:- लगन से बारहवे शनि दसवे मंगल तीसरे शुक्र लग्न मे चन्द्रमा और
क्रूर ग्रह अच्छे नही होते है लगनेश और सौम्य ग्रह आठवें भाव मे अच्छे नही
होते है सातवे भाव मे कोई भी ग्रह शुभ नही होता है।
ग्रहों का
बल:- पहले चौथे पांचवे नवें और दसवे स्थान मे गुरु सब दोषों को नष्ट करने
वाला होता है,सूर्य ग्यारहवे स्थान स्थिति तथा चन्द्रमा वर्गोत्तम लगन मे
स्थिति नवांश दोष को नष्ट करता है बुध लगन से चौथे पांचवे नौवें और दसवे
स्थान मे हो तो अक्सर खराब से खराब दोष को शुभ करता है। लगन का स्वामी और
नवांश का स्वामी एक ही भाव राशि के हों तो भी अक्सर दोष शांति को माना जाता
है.किसी भी विवाह सम्बन्धी मिलान के लिये अथवा किसी शंका के लिये लिखें.
इस तरीके से आप भी निकाल सकते हैं विवाह का शुभ मुहूर्त
विवाह
के लिए पंड़ितों द्वारा शुभ मुहूर्त निकाला जाता है। आपके घर में किसी के
विवाह की तारीख तय करनी है, आप अगर चाहें तो बिना किसी पंड़ित के पास जाए
स्वयं विवाह का शुभ मुहूर्त निकाल सकते हैं। विवाह का शुभ मुहूर्त निकालने
की प्रक्रिया इस प्रकार है....
िवाह की शुभ तिथि जानने के लिए वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है।
वर
या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है। उस नक्षत्र के चरण
में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिए प्रयोग किया
जाता है।
विवाह की तिथि सदैव वर-वधू की कुण्डली में गुण-मिलान करने के बाद निकाली जाती है।
विवाह मुहूर्त समय का निर्णय करने के लिए वर-कन्या की राशियों में विवाह की एक समान तिथि को विवाह मुहूर्त के लिए लिया जाता है।
वर
और कन्या की कुण्डलियों का मिलान कर लेने के पश्चात उनकी राशियों में
जो-जो तारीखें समान होती हैं। उन तारीखों में वर और कन्या का विवाह शुभ व
ग्राह्य माना जाता है।
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सामान्य
रूप से सभी शुभ कार्यों में वर्जित 21 प्रमुख दोष - पंचांग शुद्धि अभाव,
सूर्योदयास्त या गुरु, शुक्रास्त विभिन्न देश के रीति रिवाज को छोड़कर,
संक्रांति दिन, पाप षडवर्ग में लग्न होना, विवाह लग्न में छठे शुक्र व
अष्टम में मंगल, त्रिविध गणांत, लग्न कर्Ÿारी योग, विकंगत चंद्रमा, वर-वधू
की राशि से अष्टम लग्न, विषघटी, दुर्मुहूर्त पाप ग्रह वार दोष, लतादि दोष,
ग्रहण नक्षत्र, उल्पात नक्षत्र, पाप विद्ध नक्षत्र, पाप युत नक्षत्र, पाप
नवांश व क्रांतिसाम्य (महापाप)। विवाह मास सूर्य संक्रमण की मेष, वृष,
मिथुन, वृश्चिक, मकर, कुंभ राशियों के चांद्र मासों में विवाह उत्तमोत्तम
होता है। श्रावण, भाद्रपद एवं आश्विन मास विवाह के लिए उत्तम हैं। विवाह
तिथियां द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी एवं त्रयोदशी
तिथियां विवाह के लिए उत्तमोत्तम हैं।
प्रतिपदा
(कृष्ण), षष्ठी, अष्टमी, द्वादशी एवं पूर्णिमा तिथियां विवाह के लिए उत्तम
हैं। विवाह वार सोमवार, बुधवार, गुरुवार एवं शुक्रवार विवाह के लिए
उत्तमोत्तम हैं। रविवार विवाह के लिए उत्तम हैं। विवाह नक्षत्र रोहिणी,
मृगशिरा, मघा, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, स्वाती, अनुराधा, मूल, उत्तराषाढ़ा,
उत्तरभाद्र एवं रेवती नक्षत्र विवाह के लिए उत्तमोत्तम हैं। अश्विनी,
चित्रा, श्रवण एवं धनिष्ठा नक्षत्र विवाह के लिए उत्तम हैं। विवाह योग
प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, सुकर्मा, धृति, वृद्धि, धु्रव, सिद्धि,
वरीयान, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल एवं ब्रह्म योग विवाह के लिए
प्रशस्त हैं। विवाह करण बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर और वणिज विवाह के लिए
प्रशस्त हैं। शकुनि, चतुष्पद, नाग एवं किंस्तुघ्न करण विवाह के लिए सामान्य
हैं। विष्टि करण विवाह के लिए सर्वथा त्याज्य है।
गुरु/शुक्र
अस्त विचार गुरु और शुक्र ग्रह यदि अस्त चल रहे हों, तो उसे तारा डूबा
कहते हैं। इसलिए गुरु-शुक्र का अस्त काल विवाह मुहूर्त के लिए त्याज्य है।
देव शयन विचार जब सूर्य उत्तरायण होता है, उस काल को देवताओं का दिन माना
जाता है। सूर्य दक्षिणायन काल देवताओं की रात्रि मानी जाती है। यही काल
देवताओं का शयन काल कहलाता है। देव शयन काल में भी विवाह मुहूर्त त्याज्य
होता है। विवाह में विशेष लत्तादि दोष विवाह लग्न में मुख्य रूप से 10 दोष
वर्जित हैं, जो इस प्रकार हैं- लत्ता पात युति वेध जामित्र बाणपंचक एकार्गल
उपग्रह क्रांतिसाम्य दग्धा। इनमें वेध व क्रांतिसाम्य अति गंभीर दोष हैं,
अतः विवाह लग्न में इनका त्याग अवश्य करना चाहिए। 1. लत्ता दोष: लत्ता दोष
एक गंभीर दोष है जिसका सर्वथा त्याग करना चाहिए। इसकी दो स्थितियां होती
हैं। एक स्थिति में विवाह नक्षत्र के दायीं 2. पात दोष: सूर्य जिस नक्षत्र
में हो उसी नक्षत्र में यदि फेरों का समय आ जाए तो पात दोष होता है। मघा,
आश्लेषा, चित्रा, अनुराधा, रेवती और श्रवण ये 6 पातकी नक्षत्र हैं। ये सभी
सूर्य के संयोग से पतित हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त साध्य, हर्षण, शूल,
वैधृत, व्यतिपात व गंड इन योगों का अंत यदि उस दिन के नक्षत्र में हो, तो
पात दोष होता है। इसे चंडायुध दोष भी कहते हैं। यह प्रायः सभी शुभ कार्यों
में वर्जित है। 3. युति दोष: विवाह नक्षत्र में पाप ग्रह का विचरण या युति
हो, तो युति दोष होता है।
सूर्य, मंगल, शनि,
राहु और केतु पाप ग्रह हैं। यदि चंद्र षडवर्ग में श्रेष्ठ, उच्च,
स्वक्षेत्री या मित्र हो, तो युति दोष का परिहार हो जाता है। शुभ ग्रहों
में बुध और गुरु यदि चंद्र के नक्षत्र में हों और मित्र राशि में हों, तो
भी युति दोष नहीं माना जाता। शुक्र की युति को शुभ माना गया है, इसका दोष
नहीं लगता है।
युति दोष के शुभ-अशुभ फल इस
प्रकार हैं- 4. वेध दोष: विवाह नक्षत्र का जिस नक्षत्र में वेध हो, उसमें
कोई क्रूर या पाप ग्रह चल रहा हो, तो वेध दोष ओर के 12 वें नक्षत्र को
सूर्य, तीसरे को मंगल, छठे को बृहस्पति और आठवें को शनि लात मारता है।
दूसरी स्थिति में बायीं ओर के सातवें नक्षत्र को बुध, नौवें को राहु,
पांचवें को शुक्र और 22 वें को पूर्ण चंद्र लात मारता है। इसका फल इस
प्रकार है। पंचशलाका चक्र में एक रेखा पर पड़ने वाले निम्न नक्षत्रों में
ग्रह होने से नक्षत्रों का परस्पर वेध हो जाता है। रोहिणी-अभिजित,
भरणी-अनुराधा, उŸाराषाढ़ा-मृगशिरा, श्रवण-मघा, हस्त-उŸाराभाद्रपद,
स्वाति-शतभिषा मूल-पुनर्वसु, र े व त ी - उ Ÿ ा र ा फ ा ल् ग ु न ी ,
चित्रा-पूर्वाभाद्रपद, ज्येष्ठा-पुष्य, पूर्वाषाढ़-आद्र्रा,
धनिष्ठा-अश्लेषा, अश्विनी-पूर्वाफाल्गुनी, विशाखा-कृ त्तिका का आपस में वेध
होता है यदि विवाह नक्षत्र में शुभ ग्रह का वेध हो तो 'पादवेध' होता है।
पादवेध में पूरा नक्षत्र दूषित नहीं होता, सिर्फ चरण दूषित होता है। यदि
नक्षत्र के चतुर्थ चरण पर ग्रह हो, तो सामने वाले नक्षत्र के प्रथम चरण पर
वेध होगा। यदि ग्रह द्वितीय चरण पर हो, तो सामने वाले नक्षत्र के तृतीय चरण
पर वेध होगा। विवाह मुहूर्त में पादवेध के काल का ही त्याग करना चाहिए,
संपूर्ण नक्षत्र का नहीं। पापग्रहों द्वारा भोगकर छोड़े हुए नक्षत्र को यदि
चंद्र भोग ले, तो नक्षत्र शुद्ध होकर वेध दोष दूर हो जाता है। 'रवि वेधे च
वैधकं, पुत्रशोको भवेत कुजे।' अर्थात सूर्य के वेध में विवाह करने से कन्या
विधवा हो जाती है और मंगल वेध से पुत्रशोक होता है। शनि के वेध से
मृतसंतान उत्पन्न होती है तथा राहु के वेध से स्त्री व्यभिचारिणी हो जाती
है। अतः लग्न में इसका परित्याग अवश्य ही करना चाहिए। 5. यामित्र दोष:
विवाह नक्षत्र से 14 वें नक्षत्र पर कोई ग्रह हो, तो यामित्र या जामित्र
दोष लगता है। जामित्र अर्थात सप्तम स्थान। विवाह के समय चंद्र या लग्न से
सप्तम भाव में कोई ग्रह हो, तो यह दोष होता है। अतः सप्तम स्थान की शुद्धि
आवश्यक होती है। पूर्ण चंद्र, बुध, गुरु और शुक्र के होने से जामित्र शुभ
तथा पाप ग्रहों के होने से अशुभ फलदायक होता है। सप्तम अशुभ ग्रह व्याधि और
वैधव्य का कारक होता है। 6. बाण पंचक दोष: संक्रांति के व्यतीत दिनों
(लगभग 16 दिन) में 4 जोड़कर 9 का भाग देने पर शेष 5 रहे तो मृत्यु पंचक दोष
होता है। यदि गतांश में 6 जोड़कर 9 का भाग देने 5 शेष बचे, तो रोग पंचक, 3
जोड़कर 9 का भाग देने पर 5 शेष बचे, तो अग्नि पंचक, यदि 1 जोड़कर 9 का भाग
देने पर 5 शेष बचे, तो राज पंचक और यदि 8 जोड़कर 9 का भाग देने पर 5 शेष
बचे, तो चोर पंचक दोष होता है। यदि शेष 5 नहीं रहे, तो बाण दोष नहीं होगा।
यदि रविवार को रोग पंचक लगे तो सोमवार को राज पंचक, मंगल को अग्नि पंचक,
शुक्र को चोर पंचक और शनि को मृत्यु पंचक होता है। ये सभी दोष विवाह में
वर्जित हैं। रोग और चोर पंचक रात्रि में, राज और अग्नि पंचक दिन में और
दोनों की संधि में मृत्यु पंचक वर्जित है। मृत्यु पंचक को छोड़ कर 4 पंचकों
में दोष का निर्वाह हो जाता है। लेकिन मृत्यु पंचक सर्वथा वर्जित है। इसमें
विवाह नहीं करना चाहिए। 7. एकार्गल दोष: विष्कंुभ, अतिगंड, शूल, गंड,
व्याघात, वज्र, व्यतिपात, परिघ, वैधृति ये अशुभ योग विवाह के दिन हों तथा
सूर्य नक्षत्र से विवाह नक्षत्र विषम हो तो एकार्गल दोष होता है। इसमें
नक्षत्र गणना 28 मानकर की जाती है। इस दोष में खोड़ी (ऽ) लगती है दोष नहीं
हो तो रेखा (।) लगाते हैं। 8. उपग्रह दोष: सूर्य नक्षत्र से विवाह नक्षत्र
तक गणना में 5, 7, 8, 10, 14, 15, 18, 19, 21, 22, 23, 24 या 25वें नक्षत्र
में कोई ग्रह आए, तो उपग्रह दोष होता है। 9. क्रांतिसाम्य दोष: जब स्पष्ट
चंद्रक्रांति सूर्य क्रांति के बिल्कुल समान हो तब क्रांतिसाम्य दोष होता
है। एक ही अयन में स्पष्ट चंद्र व सूर्य का योग 360 अंश पर क्रांतिसाम्य
होने पर वैधृति नामक महापात होता है। विभिन्न अयन में स्पष्ट चंद्र व सूर्य
का योग 180 अंश पर क्रांतिसाम्य होने पर यह व्यतिपात संज्ञक होता है।
क्रांतिसाम्य काल का निर्धारण गणित विधि से सिद्धांतोक्त पाताध्यायों के
अनुसार किया जाता है।
साधारण तौर पर मेष-सिंह,
वृष-मकर, तुला-कुंभ, कन्या-मीन, कर्क-वृश्चिक और धनु-मिथुन इन राशि युग्मों
में, एक में सूर्य व एक में चंद्र हो, तो क्रांतिसाम्य दोष संभावित होता
है। क्रांतिसाम्य दोष शुभ कार्यों में सभी शुभ गुणों को नष्ट कर देता है।
विवाह पटल के अनुसार शस्त्र से कटा, अग्नि में जला या सर्प के विषदंश से
पीड़ित व्यक्ति तो जीवित बच सकता है, किंतु क्रांतिसाम्य में विवाह करने पर
वर-वधू दोनों ही जीवित नहीं रहते। अतः लग्न शुभ (शुद्ध) होने पर भी उक्त
दोषों (क्रांतिसाम्य, वेधदोष) में विवाह नहीं करना चाहिए। सूक्ष्म क्रांति
साम्य (महापात) की गणित गणना होती है। इसमें सभी शुभ कार्य वजिर्त हं।ै
10.दग्धा तिथि: सूर्य राशि से तिथि को वर्जित माना गया है। नीचे दिए गए
तिथि चक्र में जिस माह के सूर्य के नीचे जो तिथि लिखी गई है, वह दग्धा तिथि
मानी जाती है। इसमें विवाहादि शुभ कार्य वर्जित हैं। विशेष रूप से त्याज्य
चार दोष विवाह लग्न में निम्नोक्त 4 दोष भी त्याज्य हंै। मर्म वेध: लग्न
में पाप ग्रह होने से मर्म वेध होता है। कंटक दोष: त्रिकोण में पाप ग्रह
होने से कंटक दोष होता है। शल्य दोष: चतुर्थ और दशम में पाप ग्रह होने से
शल्य दोष होता है। छिद्र दोष: सप्तम भाव में पाप ग्रह होने से छिद्र दोष
होता है। ज्येष्ठा विचार ज्येष्ठ मास में उत्पन्न व्यक्ति का ज्येष्ठा
नक्षत्र हो तो ज्येष्ठ मास में विवाह वर्जित होता है। वर और कन्या दोनों का
जन्म ज्येष्ठ मास में हुआ हो, तो इस स्थिति में भी ज्येष्ठ मास में विवाह
वर्जित है। विवाह के समय तीन ज्येष्ठों का एक साथ होना वर्जित है। दो या
चार या छह ज्येष्ठा होने से विवाह हो सकता है।
सिंह-गुरु
वर्जित: सिंह राशि में गुरु हो तो विवाह वर्जित होता है। लेकिन मेष का
सूर्य रहे तो सिंह के गुरु में विवाह हो सकता है। होलाष्टक: फाल्गुन मास के
शुक्लपक्ष में होलिका दहन से 8 दिन पहले अर्थात् शुक्लाष्टमी से पूर्णिमा
तक होलाष्टक रहते हैं जो कि शतरुद्रा, विपाशा, इरावती और तीनों पुष्कर को
छोड़कर सर्वत्र शुभ हंै, इसलिए इन स्थानों के अतिरिक्त सर्वत्र विवाहादि शुभ
कार्य हो सकते हैं। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रमुख दोषों का फल इस प्रकार
है। व्यतिपात में विवाह होने पर मृत्यु और वंश नाश की संभावना रहती है।
विवाह में लग्न शुद्धि दिन और रात के 24 घंटों में 12 राशियों के 12 लग्न
होते हैं। सभी मुहूर्तों में लग्न की सर्वाधिक प्रधानता होती है। विवाह आदि
शुभ कार्यों में लग्न का शोधन गंभीरता से किया जाता है। विवाह हेतु वृष,
मिथुन, कन्या, तुला, धनु लग्न शुभ कहे गए हैं, इन लग्नों में विवाह उत्तम
फलदायी होता है।
अलग-अलग भावों में स्थित ग्रह
विवाह लग्न हेतु अशुभ होते हैं। इस संदर्भ में एक संक्षिप्त विवरण नीचे की
सारणी में दी गई है। इनमें से कुछ ग्रहों की पूजा कराकर लग्न शुद्धि की जा
सकती है। इनकी शांति के उपरांत विवाह में तथा दाम्पत्य जीवन में बाधाएं
नहीं आतीं। विवाह लग्न में शुभ ग्रह केंद्र, त्रिकोण या द्वितीय, द्वादश
में हों और पाप ग्रह भाव 3, 6 या 11 में स्थित हों तो शुभफल देते हैं। लग्न
(प्रथम भाव) से षष्ठ में शुक्र व अष्टम में मंगल अशुभ होता है। सप्तम भाव
ग्रह रहित हो, विवाह लग्न से चंद्र भाव 6, 8 या 12 में न हो, तो लग्न शुभ
होता है। लग्न भंग-मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के लग्न के
व्यय भाव में शनि हो, तो उस लग्न में विवाह नहीं करना चाहिए। दशम में
मंगल, तृतीय में शुक्र, लग्न में चंद्र या पाप ग्रह हो, लग्नेश, सूर्य,
चंद्र छठे भाव में हो अथवा चंद्र, लग्न का स्वामी या कोई शुभ ग्रह आठवंे
भाव में हो अथवा सप्तम भाव में कोई भी ग्रह हो, तो लग्न भंग होता है। विवाह
लग्न में कन्या, मिथुन, धनु का पूर्वाधि नवांश शुभ होता है, बशर्ते ये
अंतिम नवांश में न हो। उक्त राशियों का नवांश हो, तो दम्पति को पुत्र, धन व
सौभाग्य की प्रप्ति होती है।
वर और कन्या की
जन्म राशियों या लग्नों से अष्टम या द्वादश भाव का नवांश यदि अनेक गुणों से
युक्त हो तो त्याज्य है। श्री रामदैवज्ञ के अनुसार, लग्न का स्वामी लग्न
में स्थित हो या उसे देखता हो, अथवा नवांश का स्वामी नवांश में स्थित हो या
उसे देखता हो, तो वह वर को शुभफल प्रदान करता है। इसी प्रकार नवांश का
सप्तमेश सप्तम भाव को देखता हो, तो वधू के लिए शुभ फलदायक होता है। कर्तरी
दोष एवं परिहार: विवाह लग्न से दूसरे या 12वें भाव में यदि पाप ग्रह हो, तो
कर्तरी दोष होता है, जो कैंची की तरह दोनों ओर से लग्न की शुभता को काटता
है। लग्न से द्वितीय स्थान में पापग्रह वक्री और द्वादश में पाप ग्रह
मार्गी हो, तो यह दोष महाकर्तरी होता है, इसका सर्वथा त्याग करना चाहिए।
लग्न में बलवान शुभग्रह हो, तो कर्तरी दोष भंग हो जाता है। केंद्र या
त्रिकोण में गुरु, शुक्र या बुध हो, या कर्तरीकारक ग्रह नीचस्थ अथवा
शत्रुक्षेत्री हो, तो कर्तरी दोष होता है।
पंगु,
अंध, बधिर लग्न: तुला और वृश्चिक दिन में तथा धनु एवं मकर रात्रि में बधिर
(बहरी) होते हैं। बधिर लग्न में विवाह करने से जीवन दुखमय होता है। मेष,
वृष और सिंह दिन में तथा मिथुन, कर्क और कन्या रात्रि में अंधे होते हैं।
दिन में कुंभ एवं रात्रि में मीन लग्न पंगु (विकलांग) होता है। पंगु लग्न
में विवाह होने पर धन का नाश होता है। दिवा अंध लग्न में कन्या विधवा हो
जाती है, जबकि रात्रि अंध लग्न संतान के लिए मृत्युकारक होता है। इसलिए इन
दोषपूर्ण लग्नों से बचना चाहिए। किंतु, यदि लग्न का स्वामी या गुरु लग्न को
देखता हो, तो पंगु, बधिर आदि लग्न दोष नहीं होते हैं। त्रिबल शुद्धि विचार
वर व कन्या की जन्मराशि से सूर्य, चंद्र व गुरु का गोचर नाम त्रिबल विचार
है। विवाह मुहूर्त के दिनों में से जिस दिन त्रिबल शुद्धि बन जाए, उसी दिन
विवाह निश्चय करके बता देना चाहिए। कन्या के लिए गुरुबल व वर के लिए
सूर्यबल का विचार और चंद्रबल का विचार दोनों के लिए करना चाहिए।
सूर्य,
चंद्र और गुरु की शुिद्ध होने पर ही विवाह शुभ होता है। वरस्य भास्कर बलं:
विवाह के समय वर के लिए सूर्य का बलवान और शुभ होना अति आवश्यक है। सूर्य
के बलवान होने से दाम्पत्य जीवन में पति का पत्नी पर प्रभाव व नियंत्रण
रहता है। दोनों में वैचारिक सामंजस्य रहता है एवं जीवन के कठिन समय में
संघर्ष करने की क्षमता भी सूर्य से प्राप्त होती है। सूर्य की शुभता से
संपूर्ण वैवाहिक जीवन सुखमय होता है। विवाह के समय वर की जन्म राशि से
तीसरे, छठे, 10वें और 11वें भाव में सूर्य का गोचर श्रेष्ठ किंतु चैथे,
आठवें और 12वें भाव में अनिष्ट होने के कारण त्याज्य है।
पहले,
दूसरे, पांचवें, सातवें और नौवें भाव का सूर्य पूजनीय है अर्थात विवाह से
पहले सूर्य की पूजा व लाल दान करने से ही विवाह शुभ हो पाता है। इनमें पहले
और सातवें स्थान का सूर्य वर द्वारा विशेष पूज्य माना गया है। दाम्पत्य
जीवन में वर के वर्चस्व के लिए यह आवश्यक है कि सूर्य के उत्तरायण काल,
शुक्ल पक्ष व दिवा लग्न में ही विवाह करे। दिवा लग्न में भी अभिजित मुहूर्त
सर्वश्रेष्ठ है। सूर्य जिस राशि में हो उससे चतुर्थ राशि का लग्न अभिजित
लग्न कहलाता है। यह स्थानीय मध्याह्न काल (दोपहर) में पड़ता है।
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विवाह
लग्न में सूर्य यदि एकादश भाव में हो, तो यह सोने में सुहागा होता है।
विवाह हेतु अन्य लग्न शुद्धि न हो सके, तो अभिजित मुहूर्त या लग्न में
विवाह सभी वर्गों के लिए शुभ होता है। कन्यायां गुरौ बलं: कन्या के
दाम्पत्य सुख व पति भाव का कारक गुरु है, इसलिए गुरु की शुद्धि में कन्या
का विवाह शुभ होता है। कन्या की जन्म राशि से दूसरे, पांचवें, सातवें,
नौवें या 11वें में स्थित गुरु विवाह हेतु शुभ माना जाता है, क्योंकि इन
स्थानों में गुरु बलवान होता है।
पहले, तीसरे,
छठे या 10वें में स्थित गुरु मध्यम होता है, जो पूजा से शुभ हो जाता है।
कन्या से पीला दान करा कर विवाह करना चाहिए। चैथे, आठवें या 12वें में
स्थित गुरु अशुभ होता हैं, यह पूजा से भी शुभ नहीं होता। अतः कन्या की जन्म
राशि से चैथे, आठवें या 12वें में स्थित गुरु विवाह हेतु वर्जित है। इन
स्थानों में गुरु का गोचर वैधव्यप्रद होता है। मिथुन या कन्या राशि में हो,
तो कन्या की हानि होती है। कर्क या मकर राशि में हो, तो कन्या के लिए
दुखदायी होता है। किंतु उक्त स्थानों में स्वराशि या परमोच्च हो, तो शुभ
होता है। सिंह राशि के नवांश में गुरु हो, तो विवाह नहीं करना चाहिए। कन्या
के विवाह हेतु गुरु शुद्धि का इतना गहन विचार तो उस समय किया जाता था जब
उसका विवाह दस वर्ष या इससे भी कम की आयु में होता था।
आजकल
तो लड़की का विवाह सोलह वर्ष के बाद ही होता है। इस उम्र तक वह कन्या नहीं
रहती, वह तो रजस्वला होकर युवती हो जाती है। इसलिए गुरुबल शुद्धि रहने पर
भी पूजा देकर लड़की का विवाह कराना शास्त्रसम्मत है। ऐसे में विवाह लग्न
शुद्धि के लिए चंद्रबल देखना ही अनिवार्य है। विवाहे चंद्रबलं: श्री
बादरायण के अनुसार गुरु और शुक्र के बाल्य दोष में कन्या का और वृद्धत्व
दोष में पुरुष का विनाश होता है। गुरु अस्त हो तो पति का, शुक्रास्त हो, तो
कन्या का तथा चंद्रास्त हो, तो दोनों का अनिष्ट होता है। अतः विवाह के समय
वर और कन्या दोनों के लिए चंद्रबल शुद्धि आवश्यक है। चंद्र का गोचर दोनों
की जन्म राशियों से तीसरे, छठे, सातवें, 10वें या 11वें भाव में शुभ
(उत्तम) होता है।
पहले, दूसरे, पांचवें, नौवें
या 12वें में चंद्रमा पूज्य है। चैथे, आठवें या 12वें स्थान का चंद्र दोनों
के लिए अशुभ होता है। विवाह पटल के अनुसार चैथा और 12वां चंद्र ही अशुभ
होने के कारण त्याज्य है। एकार्गलादि विवाह संबंधी दोष चंद्र एवं सूर्य के
बलयुक्त होने के कारण नष्ट हो जाते हैं, अर्थात् दोनों उच्चस्थ या मित्र
क्षेत्री होकर विवाह लग्न में बैठे हांे, तो समस्त दोष दूर हो जाते हैं।
चंद्र बुध के साथ शुभ और गुरु के साथ सुखदायक होता है। विवाह लग्न में
चंद्र की निम्नलिखित युतिस्थितियां दोषपूर्ण होती हैं, इनका त्याग करना
चाहिए।
सूर्य-चंद्र की युति - यह युति दंपति को
दारिद्र्य दुख देती है। चंद्र-मंगल की युति - इस युति के फलस्वरूप मरणांतक
पीड़ा होती है। चंद्र-शुक्र की युति - इस युति के फलस्वरूप पति पराई स्त्री
से प्रेम करता है, अर्थात् पत्नी को सौतन का दुख झेलना पड़ता है।
चंद्र-शनि की युति - यह युति वैराग्य देती है चंद्र-राहु की युति - राहु से युत चंद्र कलहकारी होता है।
चंद्र-केतु
की युति - यह युति कष्ट प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त यदि विवाह लग्न में
चंद्र दो पाप ग्रहों से युत हो तो मृत्यु का कारक होता है। विवाह में
गोधूलि विचार भी किया जाना चाहिए क्योंकि इसमें सभी दोष त्याज्य हैं।
बृहस्पति
के कर्क, सिंह के नवमांश में, स्वयं के नवमांश में तथा मंगल के नवमांश
अर्थात् उच्च मित्र क्षेत्री तथा स्वक्षेत्री होने पर विवाह किया जा सकता
है। अधिक मास, गुरु और शुक्र के अस्तकाल तथा समय शुद्धि का ध्यान रखते हुए
विवाह किया जा सकता है। ऊपर वर्णित दोषों के बावजूद हमारे देश में अधिकांश
विवाह अबूझ मुहूर्तों में सम्पन्न होते आ रहे हैं।
विशेष
मत तो यह है कि वर और कन्या की कुंडली का समग्र रूप से मिलान किया जाए,
जिसमें मंगल दोष, संतान, आयु, आपसी तालमेल, वैधव्य स्थिति, स्वास्थ्य और
आर्थिक स्थिति, शिक्षा के स्तर इत्यादि पर विशेष विचार करने के उपरांत शुभ
नक्षत्र और समय में विवाह किया जाना चाहिए।
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Rahukaal or Rahukalam is considered most inauspicious time of the whole day Rahu Kalam Time in Your City.
ReplyDeleteOur Rahu Kaal below is accurate Rahu Kalam Time in Your City Rahu Kaal calculated for your City.
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