वर्ष 2017 की शारदीय नवरात्री ---
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जानिए कलश स्थापना और राहुकाल का समय ---
नवरात्र
के पहले दिन मंगल कामना के लिए कलश स्थापना का विधान है। ऐसी मान्यता है
कि शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना से पूजन सफल होता है और शुभ फलों की
प्राप्ति होती है। इस वर्ष गुरुवार के दिन नवरात्र आरंभ होने के कारण
राहुकाल 1 बजकर 30 मिनट से 3 बजे तक रहेगा। इस समय कलश स्थापना, जिसे
घटस्थापना भी कहते हैं नहीं करनी चाहिए। पंचांग में इसके लिए जो शुभ
मुहूर्त बताया गया है उसका ध्यान रखना चाहिए।
घट स्थापन का शुभ मुहूर्त कब से कब तक---
गुरुवार
को सुबह 10.34 बजे तक प्रतिपदा है, इसलिए जो प्रतिपदा तिथि में घटस्थापना
करना चाहते हैं, उनके लिए सुबह 6.30 बजे से 8.19 बजे तक का मुहूर्त शुभ है।
इसके बाद मंगलकारी मुहूर्त दोपहर 12.07 बजे से 12.55 बजे तक है जो अभिजीत
मुहूर्त है।
जानिए घट स्थापना विधि----
आचार्य
पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार, प्रतिपदा तिथि सुबह 10.57 बजे तक ही
है। लेकिन देवी कार्य में उदया तिथि ग्राह्य है। इसलिए दिनभर घटस्थापना की
जा सकती है। उन्होंने कहा कि गुरुवार को रात्रि 11. 23 बजे तक हस्त नक्षत्र
रहेगा। यह नक्षत्र शुभ माना जाता है। अब घट स्थापना की विधि जानिए।
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गुरुवार
से गुरुवार नवरात्रि का महासंयोग। पालकी में बैठकर आयेगी माँ जगदम्बा, सुख
समृद्धिदायक होगे 9 दिन के नवरात्र,मिलेगा 9 लाख गुना फल; अश्विन मास के
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से 21 सितम्बर 2017 गुरुवार को शारदीय नवरात्र का
आरंभ होगा, इस बार नवरात्रि 9 दिन की है ||
ज्योतिषाचार्य
पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की नवरात्रि में नौ दिन का व्रत रखने
वालों को दाढ़ी-मूंछ और बाल नहीं कटवाने चाहिए. इस दौरान बच्चों का मुंडन
करवाना शुभ होता है.नौ दिनों तक नाखून नहीं काटने चाहिए. अगर आप नवरात्रि
में कलश स्थापना कर रहे हैं, माता की चौकी का आयोजन कर रहे हैं या अखंड
ज्योति जला रहे हैं तो इन दिनों घर खाली छोड़कर नहीं जाएं. खाने में
प्याज, लहसुन और नॉन वेज बिल्कुल न खाएं. नौ दिन का व्रत रखने वालों को
काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए. व्रत रखने वाले लोगों को बेल्ट, चप्पल-जूते,
बैग जैसी चमड़े की चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. व्रत रखने वालों को
नौ दिन तक नींबू नहीं काटना चाहिए. व्रत में नौ दिनों तक खाने में अनाज और
नमक का सेवन नहीं करना चाहिए. खाने में कुट्टू का आटा, समारी के चावल,
सिंघाड़े का आटा, साबूदाना, सेंधा नमक, फल, आलू, मेवे, मूंगफली खा सकते
हैं. विष्णु पुराण के अनुसार, नवरात्रि व्रत के समय दिन में सोने, तम्बाकू
चबाने और शारीरिक संबंध बनाने से भी व्रत का फल नहीं मिलता है |
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जानिए क्या करें घट स्थापना से पहले क्या करें ---
सबसे
पहले ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः
स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ मंत्र से खुद को शुद्ध
करलें। इसके बाद दाएं हाथ में अक्षत, फूल, और जल लेकर दुर्गा पूजन का
संकल्प करें।
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ये है घट स्थापना की विधि---
माता
की मूर्ति या तस्वीर के सामने कलश मिट्टी के ऊपर रखकर हाथ में अक्षत, फूल,
और गंगाजल लेकर वरुण देव का आह्वान करें। कलश में सर्वऔषधी एवं पंचरत्न
डालें। कलश के नीचे रखी मिट्टी में सप्तधान्य और सप्तमृतिका मिलाएं। आम के
पत्ते कलश में डालें। कलश के ऊपर एक पात्र में अनाज भरकर इसके ऊपर एक दीप
जलाएं। कलश में पंचपल्लव डालें और इसके ऊपर एक पानी वाला नारियल रखें जिस
पर लाल रंग का वस्त्र लिपटा हो। अब कलश के नीचे मिट्टी में जौ के दानें
फैला दें। इसके बाद देवी का ध्यान करें- खडगं चक्र गदेषु चाप परिघांछूलं
भुशुण्डीं शिर:, शंखं सन्दधतीं करैस्त्रि नयनां सर्वांग भूषावृताम। नीलाश्म
द्युतिमास्य पाद दशकां सेवे महाकालिकाम, यामस्तीत स्वपिते हरो कमलजो
हन्तुं मधुं कैटभम॥
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यह हैं शारदीय नवरात्रि का महत्व---
नवरात्र
अश्विन मास की पहली तारीख और सनातन काल से ही मनाया जा रहा है. नौ दिनों
तक, नौ नक्षत्रों और दुर्गा मां की नौ शक्तियों की पूजा की जाती है. माना
जाता है कि सबसे पहले शारदीय नवरात्रों की शुरुआत भगवान राम ने समुद्र के
किनारे की थी. लगातार नौ दिन के पूजन के बाद जब भगवान राम रावण और उसकी
लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए गए थे. विजयी होकर लौटे. यही कारण है कि
शारदीय नवरात्रों में नौ दिनों तक दुर्गा मां की पूजा के बाद दसवें दिन
दशहरा मनाया जाता है. माना जाता है कि धर्म की अधर्म पर जीत, सत्य की
असत्य पर जीत के लिए दसवें दिन दशहरा मनाते हैं.
दुर्गा अष्टमी का महत्व
नवरात्रि
में दुर्गा पूजा के दौरान अष्टमी पूजन का विशेष महत्व माना जाता है. इस
दिन मां दुर्गा के महागौरी रूप का पूजन किया जाता है. सुंदर, अति गौर वर्ण
होने के कारण इन्हें महागौरी कहा जाता है. महागौरी की आराधना से असंभव
कार्य भी संभव हो जाते हैं, समस्त पापों का नाश होता है, सुख-सौभाग्य की
प्राप्ति होती है और हर मनोकामना पूर्ण होती है.
कलश स्थापना का महत्व
शास्त्रों
के अनुसार नवरात्र व्रत-पूजा में कलश स्थापना का महत्व सर्वाधिक है,
क्योंकि कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, नवग्रहों, सभी नदियों,
सागरों-सरोवरों, सातों द्वीपों,चौंसठ योगिनियों सहित सभी 33 करोड़
देवी-देवताओं का वास रहता है, तभी विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं
का पूजन हो जाता है.
शारदीय नवरात्र में अखंड ज्योत का महत्व:
अखंड
ज्योत को जलाने से घर में हमेशा मां दुर्गा की कृपा बनी रहती है. ऐसा
जरूरी नही है कि हर घर में अखंड ज्योत जलें. अखंड ज्योत के भी कुछ नियम
होते हैं जिन्हें नवरात्र के दिनों में पालन करना होता है. हिन्दू परंम्परा
के मुताबिक जिन घरों में अखंड ज्योत जलाते हैं उन्हें जमीन पर सोना होता
पड़ता है.
क्यों होता है 9 कन्याओं का पूजन
नौ कन्याएं
को नौ देवियों का रूप माना जाता है. इसमें दो साल की बच्ची, तीन साल की
त्रिमूर्ति, चार साल की कल्याणी, पांच साल की रोहिणी, छह साल की कालिका,
सात साल की चंडिका, आठ साल की शाम्भवी, नौ साल की दुर्गा और दस साल की
कन्या सुभद्रा का स्वरूप होती हैं. नवरात्र के नौ दिनों में मां अलग-अलग
दिन आवगमन कर भक्तों का उद्धार करेंगी.
- रविवार व सोमवार को माता का वाहन हाथी होता है
- शनिवार व मंगलवार को माता का वाहन घोड़ा होता है
- गुरुवार व शुक्रवार को माता का वाहन पालकी होता है
- बुधवार को नौका माता का वाहन होती है
- रविवार व सोमवार माता का वाहन भैंसा होता है
- शनिवार और मंगलवार को माता का वाहन शेर होता है
- बुधवार व शुक्रवार को माता का वाहन हाथी होता है
- गुरुवार को माता का वाहन नर होता है
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माता
की नौ स्वरूप है — क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा,
स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री। प्राचीन
मान्यता के अनुसार नवरात्रि में 9 दिनों तक माता दुर्गा के 9 स्वरूपों की
आराधना करने से जीवन में ऋद्धि-सिद्धि ,सुख- शांति, मान-सम्मान, यश और
समृद्धि की प्राप्ति शीघ्र ही होती है। माता दुर्गा हिन्दू धर्म में
आद्यशक्ति के रूप में सुप्रतिष्ठित है तथा माता शीघ्र फल प्रदान करनेवाली
देवी के रूप में लोक में प्रसिद्ध है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द
शास्त्री ने बताया की देवीभागवत पुराण के अनुसार आश्विन मास में माता की
पूजा-अर्चना वा नवरात्र व्रत करने से मनुष्य पर देवी दुर्गा की कृपा
सम्पूर्ण वर्ष बनी रहती है और मनुष्य का कल्याण होता है। अष्टमी" के दिन
माता महागौरी की पूजा की जाती है तथा उस दिन उपवास व्रत के साथ-साथ कन्या
पूजन का भी विधान है। कन्या पूजन नवमी के दिन भी किया जाता है। यदि कोई
व्यक्ति नौ दिनों तक पूजा करने में समर्थ नहीं है और वह माता के नौ दिनों
के व्रत का फल लेना चाहता है तो उसे प्रथम नवरात्र तथा अष्टमी का व्रत करना
चाहिए माता उसे मनोवांछित फल प्रदान करती है।
शुभ
मुहूर्त 21 सितंबर को सुबह 06 बजकर 03 मिनट से लेकर 08 बजकर 22 मिनट तक का
है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताय की इस शारदीय नवरात्रि
में एक और शुभ संयोग बन रहा है। कोई भी दो तिथि किसी एक दिन नहीं पड़ेगी
यानि कि इस बार का नवरात्रि का पर्व पूरे नौ दिनों तक चलेगा और दसवें दिन
विजयदशमी मनाई जाएगी। आश्विन माह में पड़ने वाले इस नवरात्रि को शारदीय
नवरात्रि कहा जाता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित
दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस वर्ष 2017 में घट/माँ दुर्गा प्रतिमा
स्थापन का ( नवरात्रि का) शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 3 मिनट से 8 बजकर 22
मिनट तक रहेगा। नवरात्रि के दौरान माता के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की
जाती है। नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है इसके बाद लगातार नौ
दिनों तक माता की भक्ति में पूजा और उपवास आदि किया जाता है और अष्टमी और
नवमी में कन्या पूजा की जाती है।
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मां शैल पुत्री की पूजा का मुहूर्त---
मां
दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का पहला दिन गुरुवार यानी 21 सितंबर है.
शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो गए हैं. माना जाता है कि यहां से सर्दियां दस्तक
देती हैं. हालांकि पिछले कुछ सालों से ऐसा नहीं हो रहा है. मां दुर्गा का
आशीर्वाद लेने के लिए लोग शुभ मुहूर्त में पूजा करते हैं. नवरात्र में लोग
अपने घरों में कलश स्थापना करते हैं. मान्यता है कि कलश शुभ मुहूर्त में
स्थापित करने से जीवन में आने वाली परेशानियां खत्म हो जाती हैं.
कैसे करें पूजा की तैयारी?
इस
बार नवरात्रि का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 3 मिनट से 8 बजकर 22 मिनट तक
रहेगा. इसके बाद नौ दिन तक रोजाना मां दुर्गा का पूजन और उपवास किया जाता
है. पहले दिन मां के शैलपुत्री रूप का पूजन किया जाता है. इसी दिन कलश
स्थापना होती है. कलश पर स्वास्तिक बनाया जाता है. इसके बाद कलश पर मौली
बांध कर उसमें जल भरकर उसे नौ दिन के लिए स्थापित कर दिया जाता है.
कलश
स्थापना के लिए भूमि को शुद्ध किया जाता है. गोबर और गंगा-जल से जमीन को
लीपा जाता है. विधि-विधान के अनुसार इस स्थान पर अक्षत डाले जाते हैं तथा
कुमकुम मिलाकर डाला जाता है. इस पर कलश स्थापित किया जाता है.
मार्कण्डेय
पुराण के अनुसार माता शैल पुत्री का नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा.
हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है. मां शैलपुत्री
को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है.
इनकी पूजन विधि इस प्रकार है-
चौकी
पर माता शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद गंगा जल
या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें. चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में
जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें. उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण,
नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी
लगाएं) की स्थापना भी करें. इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक
एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां शैलपुत्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की
षोडशोपचार पूजा करें.
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
अर्थात-
देवी वृषभ पर विराजित हैं. शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और
बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है. यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है.
नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैल पुत्री का पूजन करना
चाहिए.
माता शैलपुत्री की आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती
है. हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी है, महिलाओं के
लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है.
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वर्ष
में दो बार नवरात्रि आता है एक चैत्र मास में दूसरा सितंबर-अक्टूबर में
शारदीय नवरात्रि। इस बार 21 सितंबर से शुरू होने जा रहे शारदीय नवरात्रि
हस्त नक्षत्र में शुरू होंगे जो काफी अच्छा माना जाता है। ज्योतिषाचार्य
पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार नवरात्रि का हस्त नक्षत्र में प्रारम्भ
होने से घट स्थापना का विशेष महत्व होता है। इस मुहूर्त में घट स्थापना से
मां की विशेष कृपा मिलती है और परेशानियों से मुक्ति मिल जाएगी।
नवरात्रि
एक हिंदू पर्व है। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ
रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति / देवी के नौ रूपों की
पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष
में चार बार आता है। पौष, चैत्र,आषाढ,अश्विन प्रतिपदा से नवमी तक मनाया
जाता है।
नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों –
महालक्ष्मी, महासरस्वती या सरस्वती और दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती
है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति /
देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गाका मतलब जीवन के दुख कॊ
हटानेवाली होता है। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे
भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।
नौ
देवियाँ है :- शैलपुत्री – इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है।
ब्रह्मचारिणी – इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी। चंद्रघंटा – इसका अर्थ- चाँद की
तरह चमकने वाली। कूष्माण्डा – इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है।
स्कंदमाता – इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता। कात्यायनी – इसका अर्थ-
कात्यायन आश्रम में जन्मि। कालरात्रि – इसका अर्थ- काल का नाश करने वली।
महागौरी – इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां। सिद्धिदात्री – इसका अर्थ- सर्व
सिद्धि देने वाली।
वैसे तो एक साल में कुल मिलाकर
चार नवरात्रि आते है जो चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीनें में पड़ता है।
21 सितंबर से सुबह मां के शैलपुत्री के रूप का पूजा की जाती है। नवरात्रि
के पहले दिन कलश की स्थापना की जाती है साथ ही कलश में स्वास्तिक का चिन्ह
बनाया जाता है जो कि काफी शुभ माना जाता है। इसके अलावा कलश में मौली बांध
कर उसमें अक्षत का डालकर जल से उसको भर देते हैं।
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जानिए इस वर्ष 2017 की शारदीय नवरात्री की तिथियां--
प्रथम नवरात्रि (प्रतिपदा), शैलपुत्री स्वरूप की पूजा – 21 सितंबर 2017, वृहस्पतिवार,
दूसरा नवरात्रि, चन्द्र दर्शन, देवी ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा – 22 सितंबर 2017, शुक्रवार
तृतीय नवरात्रि, सिन्दूर चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा – 23 सितंबर 2017, शनिवार
चतुर्थ नवरात्रि, कुष्मांडा स्वरूप की पूजा – 24 सितंबर 2017, रविवार
पंच
मी नवरात्रि, स्कंदमाता की पूजा, वरद विनायका चौथ – 25 सितंबर 2017, सोमवार
षष्ठी नवरात्रि, कात्यायनी स्वरूप की पूजा – 26 सितंबर 2017, मंगलवार
सप्तमी नवरात्रि, कालरात्रि स्वरूप की पूजा – 27 सितंबर 2017, बुधवार
अष्टमी नवरात्रि, महागौरी स्वरूप की पूजा – 28 सितंबर 2017, वृहस्पतिवार
नवमी नवरात्रि, सिद्धिदात्री स्वरूप की पूजा – 29 सितंबर 2017, शुक्रवार
दशमी तिथि, दशहरा 30 सितंबर 2017, शनिवार
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