प्रिय
मित्रों/पाठकों, (शुक्रवार) 25 अगस्त 2017 को गणेश चतुर्थी कई शुभ योगों
के बीच संपन्न हुई हैं । श्रेष्ठ माना जाने वाला हस्त नक्षत्र शाम तक
रहेगा, जबकि इसके बाद चित्रा नक्षत्र शुरू होगा। पंडित दयानन्द शास्त्री के
अनुसार इसी नक्षत्र में भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इसके अलावा शुभ, अमृत
और रवियोग के शुभ संयोग ने भी इस पर्व की शुभता को बढ़ा दिया था । इन
योगों में की गई गणेश पूजा शुभ फलदायी रहेगी। वहीं, जमीन, मकान, ज्वैलरी और
गाड़ियां खरीदी करना भी लाभदायक रहेगा। इस बार गणेशोत्सव 10 की बजाए 11
दिन का रहेगा। दसवीं तिथि दो दिन 31 अगस्त और 1 सितंबर को पड़ रही है। इसे
भी पंडितों ने शुभ माना है। पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार, चतुर्थी पर
शाम 4.27 तक हस्त नक्षत्र था । इस नक्षत्र को श्रेष्ठ माना जाता है, जबकि
इसके बाद इसी दिन शाम 4.28 से शुरू होने वाला चित्रा नक्षत्र चतुर्थी पर
होने से सोने में सुहागा जैसा रहा। इस वर्ष भगवान् गणेश/ लंबोदर गजकेसरी
योग में विराजें हैं , जो छात्रों, बुद्धिजीवियों के साथ-साथ राजनीतिज्ञों
के लिए बहुत कल्याणकारी सिद्ध होगा। यह योग कई शुभ संयोग लेकर आ रहा है। कई
राशियों के जातकों को इसका लाभ मिलेगा।
हिंदू
पंचाग के अनुसार गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को
मध्याह्न में शक्ति-स्वरूपा मां पार्वती ने दिव्य-स्नान के समय अपनी त्वचा
के मैल से एक बालक का स्वरूप गढ़ा, जिसमें प्राण डालकर उसे अपने महल की
पहरेदारी में नियुक्त कर दिया। इसके पश्चात शिव के गुस्से और मां की आज्ञा
का पालन करते हुए गणपति एक नवीन स्वरूप में संसार के सम्मुख आए।
इस
बार भगवान गणेश 11 दिन तक विराजेंगे। गणेश जी शनि के मित्र होने के
साथ-साथ, उनके गुरू भगवान शिव के पुत्र भी हैं। गणेश जी के भक्तों पर
शनिदेव सदा अपनी अनुकंपा बनाए रखते हैं। जो श्रद्धालु गणपति को अपने घर
लाकर उनका पूजन करेंगे, उन पर सारा साल प्रथम पूज्य और कर्म फलदाता की कृपा
बनी रहेगी। इस दिन हस्त नक्षत्र में अमृत योग, रवि योग, शुभ योग एवं
सूर्य, बुध दिव्य योग में गणपति स्थापना की जाएगी। हस्त नक्षत्र में रवि
योग, गज केसरी योग बनने से श्रद्धालुओं को विशेष शुभ फलों की प्राप्ति
होगी।
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इस
दफा गणेश चतुर्थी पर हस्त नक्षत्र का चंद्रमा अमृत योग बना था । इसके साथ
शुभ और गजकेसरी नाम के 2 अच्छे योग भी बन रहे हैं। इनके प्रभाव से शुक्रवार
8 राशियों के लिए शुभ था । मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर
और मीन राशि वालों के सोचे हुए काम पूरे होंगे। पंडित दयानन्द शास्त्री ने
बताया की कल (शनिवार-- 26 अगस्त 2017 )से शनि मार्गी हो चुके है। शनि अभी
वृश्चिक राशि में है। जो कि मंगल की राशि है एवं शनि मंगल का शत्रु है।
आगामी 26 अक्टूबर 2017 को शनि वृश्चिक से धनु राशि में प्रवेश करेगा।
ग्रहों के राशि बदलने से वृष, कन्या, वृश्चिक, कुंभ और मीन वालों के लिए
अच्छा समय शुरू हो रहा है। वहीं मेष, मिथुन, कर्क, सिंह, तुला, धनु और मकर
राशि वालों पर राहु-केतु भारी रहेंगे।
इस शुभ दिन
पर 58 वर्ष उपरांत असाधारण संयोग भी बना था । इस साल 2017 में शनि की
मार्गीय में गणेश जी विराजेंगे। यह शुभ घड़ी इससे पूर्व 1959 में बनी थी।
जो इस पर्व को अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाएगा। शनि का खास प्रभाव भी 12 राशियों
पर पड़ेगा। इस दिन से शनि सीधी चाल चलना आरंभ करेंगे। जिससे उनका प्रकोप
कम होगा। शनि वृश्चिक में 141 दिन तक वक्रीय होने के उपरांत 25 अगस्त से
मार्गीय होंगे।
शनिदेव 25 अगस्त को संध्या समय 5
बजकर 19 मिनट पर वृश्चिक राशि में मार्गी होंगे। इस दौरान गणेश उत्सव का
भी आरंभ होगा। जो लगभग सभी राशियों के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा करेगा।
इस दिन शनि पूजन करने वाला उनका प्रिय बन जाएगा। अपनी राशि में शनि के शुभ
प्रभाव चाहते हैं तो गणेश स्तोत्र और शनि स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
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जानिए क्या हैं भगवान् गणेश में विशेष--
ज्योतिषाचार्य
पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शास्त्रों के अनुसार गणेशजी के सभी
अंगों पर जीवन और ब्रह्मांड से जुड़े खास अंग विराजमान हैं। गणेशजी की पीठ
पर दरिद्रता यानी गरीबी निवास करती है। इसी वजह से इनकी पीठ के दर्शन
वर्जित किए गए हैं। जो लोग उनकी पीठ के दर्शन करते हैं, उन्हें धन की कमी
का सामना करना पड़ सकता है। गणेशजी की सूंड पर धर्म विद्यमान है तो कानों
पर ऋचाएं, दाएं हाथ में वर, बाएं हाथ में अन्न, पेट में समृद्धि, नाभी में
ब्रह्मांड, आंखों में लक्ष्य, पैरों में सातों लोक और मस्तक में ब्रह्मलोक
विद्यमान है। गणेशजी के सामने से दर्शन करने पर ये सभी सुख प्राप्त होते
हैं। गणेशजी की पीठ पर दरिद्रता का वास होता है। गणेशजी की पीठ के दर्शन
करने वाला व्यक्ति यदि बहुत धनवान भी हो तो उसके घर पर दरिद्रता का प्रभाव
बढ़ जाता है। इसी वजह से इनकी पीठ नहीं देखना चाहिए। जाने-अनजाने पीठ देख
ले तो गणेशजी से क्षमा याचना कर उनका पूजन करना चाहिए। तब बुरा प्रभाव नष्ट
हो जाता है।
घर में मिट्टी के ही गणेशजी की
स्थापना करें और घर में ही उनका विसर्जन करें। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार,
इस दिन कुछ विशेष उपाय किए जाएं तो भगवान श्रीगणेश अपने भक्तों पर प्रसन्न
होकर उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं।
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प्रिय
मित्रों/पाठकों, 25 अगस्त 2017 को हम सभी गणेश चतुर्थी माना चुके हैं ।
इसी दिन से इस वर्ष के श्रीगणेश के 11 दिवसीय गणेषोत्सव की शुरुवात हुई हैं
। इन दिनों हर कोई भगवान श्रीगणेश की मूर्ति घर-दुकान में स्थापित कर,
उनकी पूजा-अर्चना करता है।
जानिए
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री से कुछ ऐसी खास बातों के बारे में
जिन्हें गणेशजी घर-दुकान में स्थापना करने से पहने किस वास्तु सिद्धांतों
का ध्यान रखना चाहिए---
हम सभी के घर में
देवी-देवताओं की अनेक मूर्तियां और तस्वीरें लगी होती हैं, लेकिन वे
मूर्तियां और तस्वीर वास्तु के अनुसार घर में सुख-समृद्धि लाने के अनुकूल
है या नहीं, यह बात कोई नहीं जानता। पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की
वास्तु के अनुसार देवी देवताओं की मूर्तियां घर में किस रूप में है और
कहां पर स्थापित है, इस बात घर पर बहुत असर डालती है। इसलिए जब भी घर में
देवी-देवताओं की मूर्तियां लाएं तो इन बातों का ध्यान जरुर रखें।
वास्तुशास्त्री
पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की गणेश जी की सूड बायी हाथ की ओर घुमी
हो, घर में भगवान गणेश की बैठी मुद्र, और दुकान या आफिस में खडे गणपति की
मूर्ति या तस्वीर रखना शुभ होता है, गणेश जी की मूर्ति रखते समय उनके दोनो
पैर जमीन का स्पर्श करते हो, मनोकामना पूरी करने के लिए सिंदूरी रंग के
गणेश जी की आराधना करे- मूर्ति स्थापित करते समय गणेश जी का मुंह दक्षिण
दिशा की ओर न हो, गणेश जी की फोटो के साथ चुहा और मोदक अवश्य हो, घर के
मेन गेट पर गणेश जी की दो मूर्ति ऐसे लगाये दोनो गणेश जी की पीठ मिलती हुई
हो, घी मिश्रित सिंदूर से स्वास्तिक का निशान बनाये, घर के ब्रहम स्थान
यानि केन्द्र में और पूर्व दिशा में मंगलकारी गणेश जी की मूर्ति या चित्र
लगाये,
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जानिए भगवान् श्रीगणेश ने क्यों दिया था चंद्रमा को श्राप---
भगवान
गणेश को गज का मुख लगाया गया तो वे गजवदन कहलाए और माता-पिता के रूप में
पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा करने के कारण अग्रपूज्य हुए। सभी देवताओं ने
उनकी स्तुति की पर चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराता रहा। उसे अपने सौंदर्य पर
अभिमान था। गणेशजी समझ गए कि चंद्रमा अभिमानवश उनका उपहास करता है। क्रोध
में आकर भगवान श्रीगणेश ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि- आज से तुम काले हो
जाओगे।
चंद्रमा को अपनी भूल का अहसास हुआ। उसने श्रीगणेश से
क्षमा मांगी तो गणेशजी ने कहा कि सूर्य के प्रकाश से तुम्हें धीरे-धीरे
अपना स्वरूप पुनः प्राप्त हो जाएगा, लेकिन लेकिन आज (भाद्रपद शुक्ल
चतुर्ती) का यह दिन तुम्हें दंड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा। जो कोई
व्यक्ति आज तुम्हारे दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा। इसीलिए भाद्रपद
माह की शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं किया जाता।
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जानिए कैसे लगा था भगवान श्रीकृष्ण पर लगा था चोरी का आरोप
सत्राजित्
नाम के एक यदुवंशी ने सूर्य भगवान को प्रसन्न कर स्यमंतक नाम की मणि
प्राप्त की थी। वह मणि प्रतिदिन स्वर्ण प्रदान करती थी। उसके प्रभाव से
पूरे राष्ट्र में रोग, अनावृष्टि यानी बरसात न होना, सर्प, अग्नि, चोर आदि
का डर नहीं रहता था। एक दिन सत्राजित् राजा उग्रसेन के दरबार में आया। वहां
श्रीकृष्ण भी उपस्थित थे। श्रीकृष्ण ने सोचा कि कितना अच्छा होता यह मणि
अगर राजा उग्रसेन के पास होती।
किसी तरह यह बात
सत्राजित् को मालूम पड़ गई। इसलिए उसने मणि अपने भाई प्रसेन को दे दी। एक
दिन प्रसेन जंगल गया। वहां सिंह ने उसे मार डाला। जब वह वापस नहीं लौटा तो
लोगों ने यह आशंका उठाई कि श्रीकृष्ण उस मणि को चाहते थे। इसलिए सत्राजित्
को मारकर उन्होंने ही वह मणि ले ली होगी, लेकिन मणि सिंह के मुंह में रह
गई। जाम्बवान ने शेर को मारकर मणि ले ली। जब श्रीकृष्ण को यह मालूम पड़ा कि
उन पर झूठा आरोप लग रहा है तो वे सच्चाई की तलाश में जंगल गए।
वे
जाम्बवान की गुफा तक पहुंचे और जाम्बवान से मणि लेने के लिए उसके साथ 21
दिनों तक घोर संग्राम किया। अंतत: जाम्बवान समझ गया कि श्रीकृष्ण तो उनके
प्रभु हैं। त्रेता युग में श्रीराम के रूप में वे उनके स्वामी थे। जाम्बवान
ने तब खुशी-खुशी वह मणि श्रीकृष्ण को लौटा दी तथा अपनी पुत्री जाम्बवंती
का विवाह श्रीकृष्ण से करवा दिया. श्रीकृष्ण ने वह मणि सत्राजित् को सौंप
दी। सत्राजित् ने भी खुश होकर अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण के
साथ कर दिया।
ऐसा माना जाता है कि इस प्रसंग को सुनने-सुनाने से भाद्रपद मास की चतुर्थी को भूल से चंद्र-दर्शन होने का दोष नहीं लगता।
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