जानिए कब और कैसे मनाएं अश्विन नवरात्री 21 सितम्बर 2017 से (शारदीय नवरात्री 2017 )--
प्रिय
पाठकों/मित्रों, नवरात्री अर्थात "नौ रातों का समूह"| नवरात्री 9 दिनों तक
मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है, जिसमें 9 दिनों तक माँ दुर्गा की 9
अलग-अलग देवी शक्ति रूपों को पूजा जाता है |नौ देवियों के नाम और अर्थ उनके
महत्व के अनुरूप भिन्न-भिन्न है | नवरात्र शक्ति महापर्व पूरे भारतवर्ष
में बड़ी श्रद्धा व आस्था के साथ मनाया जाता है. भारत ही नहीं पूरे विश्व
में शक्ति का महत्व स्वयं सिद्ध है और उसकी उपासना के रूप अलग-अलग हैं.
समस्त शक्तियों का केन्द्र एकमात्र परमात्मा है परन्तु वह भी अपनी शक्ति के
बिना अधूरा है. सम्पूर्ण भारतीय वैदिक ग्रंथों की उपासना व तंत्र का महत्व
शक्ति उपासना के बिना अधूरा है |
ज्योतिषाचार्य
पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार नवरात्रि के 9 दिनों में देवी दुर्गा के 9
रूपों की पूजा की परंपरा सनातन काल से चली आ रही है. इन 9 दिनों में
पवित्रता और शुद्धि का विशेष ध्यान रखा जाता है | मान्यता है कि इन नियमों
के विधिपूर्वक पालन और श्रद्धापूर्वक की गयी पूजा से देवी दुर्गा की कृपा
से साधकों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इससे जीवन और घर में नकारात्मक
उर्जा समाप्त होती है और सकारात्मक उर्जा का संचार होता है |
नवरात्रि
हिन्दूओं का एक पवित्र त्यौहार है। नवरात्रि का त्यौहार हिन्दू पौराणिक
कथाओं के अनुसार सभी देवताओं में शक्तिशाली देवी दुर्गा को पूर्णतः
समर्पित है। नवरात्रि का त्यौहार नौ दिन मनाया जाता है |ज्योतिषाचार्य
पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस दिन देवी का आर्शीवाद पाने हेतु और
अपने जीवन के दुख दूर करने करने के लिए मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा
अर्चना करते है। ऐसा माना जाता है कि मां दुर्गा अपने भक्तों को प्यार,
निर्भयता, साहस और आत्मविश्वास और कई अन्य दिव्य आर्शीवाद देती है।
हिंदू
कैलेंडर के अनुसार, नवरात्र अश्विन की शुक्ल पक्ष के पहले दिन शुरू होता
है। इन्हीं नौ दिनों कि अवधि के दौरान माता दुर्गा ने महिषासुर राक्षस को
मार डाला था, देवी दुर्गा का, देवी माँ के रूप में विशेष धार्मिक महत्व है।
ज्योतिषाचार्य
पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की नवरात्रि का त्योहार सच्ची भक्ति और
पवित्रता के साथ पूरे भारत और विदेशों में भी मनाया जाता है। किसी भी जाति,
धर्म व समाज के विभिन्न वर्गों के लोग मंदिरों में माता के दर्शन मात्र
करने और माँ के चरणों में पूजा की पेशकश करके इस त्योहार को मनाते हैं। कई
जगहों पर देवी की विशेष पूजा भी कि जाती है और पंडालों के फूलों व लाइटों
से सजाया जाता है और माँ दुर्गा की 9 छवियों की मूर्तियों की स्थापना
पंडालों में कि जाती है।
माँ दुर्गा को ''देवी''
या ''शक्ति'' (ऊर्जा या शक्ति) के रूप में जाना जाता है। नवरात्रि के दौरान
हम हमारे भीतर के भगवान की ऊर्जा का आह्वान करते है और इसकी ऊर्जा के साथ
आगे बढ़ने के लिए निर्माण, संरक्षण आदि में मदद करता है।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।
इस
मंत्र का हिन्दी में अनुवाद: --- सर्व मंगलकारी वस्तुओं में विद्यमान
मांगल्य रूप देवी, कल्याणदायिनी, सर्व पुरुषार्थों को साध्य कराने वाली,
शरणागतों की रक्षा करने वाली देवी, त्रिनयना, गौरी, नारायणी ! आपको मेरा
प्रणाम । श्री दुर्गादेवीके अतुलनीय गुणोंका परिचय इस श्लोकसे होता है ।
जीवनको परिपूर्ण बनाने हेतु आवश्यक सर्व विषयोंका साक्षात् प्रतीक हैं,
आदिशक्ति श्री दुर्गादेवी । श्री दुर्गादेवीको जगत जननी कहा गया है ।
जगत्जननी अर्थात् सबकी माता ।
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अश्विन
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक यह व्रत किये जाते हैं । नौ दिनों तक
चलने वाले इस महापर्व में मां भगवती के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री,
ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि,
महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा की जाती है । आश्विन मास के इन
नवरात्रों को 'शारदीय नवरात्र' कहा जाता है क्योंकि इस समय शरद ऋतु होती
है। इस व्रत में नौ दिन तक भगवती दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ
तथा एक समय भोजन का व्रत धारण किया जाता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द
शास्त्री ने बताया की प्रतिपदा के दिन प्रात: स्नानादि करके संकल्प करें
तथा स्वयं या पण्डित के द्वारा मिट्टी की वेदी बनाकर जौ बोने चाहिए। उसी पर
घट स्थापना करें। फिर घट के ऊपर कुलदेवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन
करें तथा दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। पाठ-पूजन के समय अखण्ड दीप जलता रहना
चाहिए। वैष्णव लोग राम की मूर्ति स्थापित कर रामायण का पाठ करते हैं।
दुर्गा अष्टमी तथा नवमी को भगवती दुर्गा देवी की पूर्ण आहुति दी जाती है।
नैवेद्य, चना, हलवा, खीर आदि से भोग लगाकर कन्या तथा छोटे बच्चों को भोजन
कराना चाहिए। नवरात्र ही शक्ति पूजा का समय है, इसलिए नवरात्र में इन
शक्तियों की पूजा करनी चाहिए। पूजा करने के उपरान्त इस मंत्र द्वारा माता
की प्रार्थना करना चाहिए-
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमांश्रियम्| रूपंदेहि जयंदेहि यशोदेहि द्विषोजहि ||
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वर्ष
में दो बार अश्विन और चैत्र मास में नौ दिन के लिए उत्तर से दक्षिण भारत
में नवरात्र उत्सव मनाया जाता है। कहा जाता है कि यदि संपूर्ण दुर्गा
सप्तशती पाठ न भी कर सकें तो निम्नलिखित श्लोकों को पढ़ने से सम्पूर्ण
दुर्गा सप्तशती और नवदुर्गाओं के पूजन का फल प्राप्त हो जाता है।
सर्वमंगलमंगलये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽतु ते।।
शरणांगतदीन आर्त परित्राण परायणे
सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणि नमोऽस्तु ते।।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यारत्नाहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते।।
यूं
तो दुर्गा माँ के 108 नाम गिनाये जाते हैं लेकिन नवरात्रों में उनके स्थूल
रूप को ध्यान में रखते हुए नौ दुर्गाओं की स्तुति और पूजा पाठ करने का
गुप्त मंत्र ब्रह्मा जी ने अपने पौत्र मार्कण्डेय ऋषि को दिया था। इसको
देवीकवच भी कहते हैं। देवीकवच का पूरा पाठ दुर्गा सप्तशती के 56 श्लोकों के
अन्दर मिलता है। नौ दुर्गाओं के स्वरूप का वर्णन संक्षेप में ब्रह्मा जी
ने इस प्रकार से किया है।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम।
पंचमं स्क्न्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
अर्थात
पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चन्द्रघन्टा, चौथा
कूष्माण्डा, पाँचवा स्कन्द माता, छठा कात्यायिनी, सातवाँ कालरात्रि, आठवाँ
महागौरी, नौवां सिद्धिदात्री।
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आज इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री से जानिए कि नवरात्री क्यों मनाई जाती है|
नवरात्री मनाये जाने की के पीछे दो प्राचीन कथाएँ प्रचलित है--
नवरात्री क्यों मनाई जाती है? सम्बंधित कथाएँ---
1. पहली कथा----
रामायण
के अनुसार भगवान श्री राम, लक्ष्मण, हनुमान व समस्त वानर सेना द्वारा
आश्चिन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिनों तक माता शक्ति की उपासना कर
दशमी तिथि को लंका पर आक्रमण प्राप्त किया था। ब्रह्माजी के कथनानुसार
रावण-वध के लिए राम भगवान ने देवी चंडी माँ को खुश करने के लिए 108
नीलकमलों से उनका पूजन और हवन किया था वहीं दूसरी ओर रावण ने अमरत्व
प्राप्ति के लिए भगवान राम की पूजा से नीलकमल चुराकर चंडी पूजन प्रारम्भ कर
दिया . तब पूजा में नीलकमल के अभाव की चिंता से ग्रसित हो श्री राम को
ख़्याल आया, कि उन्हें उनके भक्त "कमल-नयन नवकंज लोचन" नाम से भी पुकारते
है. इस बात को स्मरण कर उन्होंने देवी पूजा में अपनी आँख को निकालकर रखने
का प्रण किया . तब देवी माँ ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें विजय का
वरदान दिया | दूसरी ओर देवी माँ रावण के वध के लिए हवन के दौरान ब्राह्मणों
द्वारा उच्चारित श्लोक का गलत उच्चारण करवाकर रावण के विनाश का कारण बनी .
इस तरह राम भगवान की रावण पर विजय के लिए की गई इस पूजा को आज नवरात्री के
रूप में मनाते है |
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2. दूसरी कथा---
एक
बार महिषासुर को देवों से अमर होने का वरदान प्राप्त हो गया | महिषासुर
इसी वरदान का फ़ायदा उठाकर उसने सारे स्वर्ग लोक और देवी-देवताओं के
अधिकारों को अपने वश में कर लिया . वह अजर-अमर होकर विचरण करने लगा . तब
देवी माँ दुर्गा ने सभी देवी-देवताओं के अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग कर
महिषासुर से 9 दिनों तक महायुद्ध किया और उसका वध किया . तभी से माँ दुर्गा
की विजय के उपलक्ष में नवरात्री उत्सव मनाया जाने लगा |नवरात्रि में मां
दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध करके देवताओं को उसके कष्टों से
मुक्त किया था।
महिषासुर ने भगवान शिव की आराधना करके अद्वितीय
शक्तियां प्राप्त कर ली थीं और तीनों देव अर्थात ब्रह्मा, विष्णु व महेश भी
उसे हराने में असमर्थ थे। महिषासुर राक्षस के आंतक से सभी देवता भयभीत थे।
उस समय सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियों को मिलाकर दुर्गा को अवतरित
किया। अनेक शक्तियों के तेज से जन्मीं माता दुर्गा ने महिषासुर का वध कर
सबके कष्टों को दूर किया।
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तीसरी कथा----
एक
नगर में एक ब्राह्माण रहता था। वह मां भगवती दुर्गा का परम भक्त था। उसकी
एक कन्या थी। ब्राह्मण नियम पूर्वक प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और यज्ञ किया
करता था।
सुमति अर्थात ब्राह्माण की बेटी भी
प्रतिदिन इस पूजा में भाग लिया करती थी। एक दिन सुमति खेलने में व्यस्त
होने के कारण भगवती पूजा में शामिल नहीं हो सकी।
यह देख उसके पिता को क्रोध आ गया और क्रोधवश उसके पिता ने कहा कि वह उसका विवाह किसी दरिद्र और कोढ़ी से करेगा।
पिता
की बातें सुनकर बेटी को बड़ा दुख हुआ, और उसने पिता के द्वारा क्रोध में
कही गई बातों को सहर्ष स्वीकार कर लिया। कई बार प्रयास करने से भी भाग्य का
लिखा नहीं बदलता है।
अपनी बात के अनुसार उसके
पिता ने अपनी कन्या का विवाह एक कोढ़ी के साथ कर दिया। सुमति अपने पति के
साथ विवाह कर चली गई। उसके पति का घर न होने के कारण उसे वन में घास के आसन
पर रात बड़े कष्ट में बितानी पड़ी
गरीब कन्या की
यह दशा देखकर माता भगवती उसके द्वारा पिछले जन्म में की गई उसके पुण्य
प्रभाव से प्रकट हुईं और सुमति से बोलीं 'हे कन्या मैं तुमपर प्रसन्न हूं'
मैं तुम्हें कुछ देना चाहती हूं, मांगों क्या मांगती हों।
इस
पर सुमति ने उनसे पूछा कि आप मेरी किस बात पर प्रसन्न हैं? कन्या की यह
बात सुनकर देवी कहने लगी- मैं तुम पर पूर्व जन्म के तुम्हारे पुण्य के
प्रभाव से प्रसन्न हूं, तुम पूर्व जन्म में भील की पतिव्रता स्त्री थी।
एक
दिन तुम्हारे पति भील द्वारा चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने
पकड़ कर जेलखाने में कैद कर दिया था। उन लोगों ने तुम्हें और तुम्हारे पति
को भोजन भी नहीं दिया था। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ
खाया और न ही जल पिया इसलिए नौ दिन तक नवरात्र व्रत का फल तुम्हें प्राप्त
हुआ।
हे ब्राह्मणी, उन दिनों अनजाने में जो व्रत
हुआ, उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर आज मैं तुम्हें मनोवांछित वरदान
दे रही हूं। कन्या बोली कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृ्पा करके मेरे
पति का कोढ़ दुर कर दीजिये। माता ने कन्या की यह इच्छा शीघ्र पूरी कर दी।
उसके पति का शरीर माता भगवती की कृपा से रोगहीन हो गया।
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इस
तरह नवरात्रों में माता दुर्गा की पूजा करने की प्रथा के पीछे कई कथाएं
प्रचलित हैं जिसके बाद से ही नवरात्रि का पर्व आरंभ हुआ और माता दुर्गा की
पूजा होने लगी।
इन्हीं प्राचीन कथाओं में विजय की
प्रतीक देवी माँ दुर्गा को भक्तों द्वारा नवरात्री में अलग-अलग रूपों में
पूजा जाता है . हिन्दू चैत्र और अश्विन में आने वाली नवरात्री का विशेष
महत्व है.
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वर्ष २०१७ में नवरात्री कब मनाई जाएगी?
इस वर्ष नवरात्रि उत्सव में शरद नवरात्री आश्विन माह के 21 सितम्बर 2017 से 29 सितम्बर 2017 तक नौ दिनों तक मनाई जाएगी .
२०१७ शरद नवरात्री की तिथि निन्मलिखित है और इस प्रकार मनाई जाएगी
2प्रतिपदा (नवरात्र के दिन 1) गुरूवार 21 सितम्बर2017
द्वितीया (नवरात्रि के दिन 2) शुक्रवार 22 सितम्बर 2017
तृतीया (नवरात्रि के दिन 3) शनिवार 23 सितम्बर 2017
चतुर्थी (नवरात्रि के दिन 4) रविवार 24 सितम्बर 2017
पंचमी (नवरात्रि के दिन 5) सोमवार 25 सितम्बर 2017
षष्ठी (नवरात्रि के दिन 6) मंगलवार 26 सितम्बर 2017
सप्तमी (नवरात्रि के दिन 7) बुधवार 27 सितम्बर 2017
अष्टमी (नवरात्रि के दिन 8) गुरूवार 28 सितम्बर 2017
नवमी (नवरात्रि के दिन 9) शुक्रवार 29 सितम्बर 2017
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1. शैलपुत्री पहाड़ों की पुत्री गाय
2. ब्रह्मचारिणी ब्रह्मचारीणी पैर
3. चंद्रघंटा चाँद की तरह चमकने वाली सिंह
4. कूष्माण्डा पूरा जगत उनके पैर में है सिंह
5. स्कंदमाता कार्तिक स्वामी की माता सिंह
6. कात्यायनी कात्यायन आश्रम में जन्मि सिंह
7. कालरात्रि काल का नाश करने वली गधा
8. महागौरी सफेद रंग वाली मां वृषभ
9. सिद्धिदात्री सर्व सिद्धि देने वाली सिंह
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यह रहेगा घट स्थापना का शुभ मुहूर्त --
इस
वर्ष 2017 को शारदीय नवरात्रों का आरंभ 21 सितंबर, आश्चिन शुक्ल पक्ष की
प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगा. दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू
हो जाता है अत: यह नवरात्र घट स्थापना प्रतिपदा तिथि को 21 सितंबर, के दिन
की जाएगी. इस दिन सूर्योदय से प्रतिपदा तिथि, हस्त नक्षत्रहोगा, सूर्य और
चन्द्रमा कन्या राशि में होंगे |
आश्विन शुक्ल
पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया
जाता है. व्रत का संकल्प लेने के पश्चात ब्राह्मण द्वारा या स्वयं ही मिटटी
की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है. घट
के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है. तथा
"दुर्गा सप्तशती" का पाठ किया जाता है. पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना
चाहिए|
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नौ दिन नौ भोग----
नवरात्रि के पहले दिन मां के चरणों में गाय का शुद्ध घी अर्पित करें। इससे शरीर निरोगी रहता है।
नवरात्रि के दूसरे दिन मां को शक्कर का भोग लगाएं। इससे आयु वद्धि होती है।
नवरात्रि के तीसरे दिन दूध या दूध से बनी मिठाई खीर का भोग लगाएं। इससे दुःखों से मुक्ति मिलती है।
नवरात्रि के चैथे दिन मालपुए का भोग लगाएं। इससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय शक्ति बढ़ती है।
नवरात्रि के पांचवें दिन मां को केले का भोग चढ़ायं। इससे शरीर स्वस्थ रहता है।
नवरात्रि के छठे दिन मां को शहद का भोग लगाएं। जिससे लोग आप की तरफ आकर्षित होंगे।
नवरात्रि के सातवें दिन मां को गुड़ का भोग चढ़ाएं। इससे आकस्मिक आने वाले संकटों से रक्षा मिलती है।
नवरात्रि के आठवें दिन मां को नारियल का भोग लगाए। इससे संतान संबंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता है।
नवरात्रि के नवें दिन मां को तिल का भोग लगाएं। इससे मृत्यु भय से राहत मिलेगी।
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जानिए क्यों शक्ति की मां रूप में पूजा होती है ???
ज्योतिषाचार्य
पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार शक्ति से तात्पर्य है ऊर्जा यदि ऊर्जा
को अपने अनुसार चलाना है तो उस पर आधिपत्य करना पड़ेगा मतलब या तो शक्ति को
हराकर या तो शक्ति को जीतकर उसे हम अपने पराधीन कर सकते हैं. परन्तु यह
होना जनमानस से संभव नहीं था इसलिए भारत में उससे समस्त कृपा पाने के लिए
मां शब्द से उद्धृत किया गया. इससे शक्ति में वात्सल्य भाव जाग्रत हो जाता
है और अधूरी पूजा व जाप से भी मां कृपा कर देती है. इसलिए सम्पूर्ण वैदिक
साहित्य और भारतीय आध्यात्म शक्ति की उपासना प्रायः मां के रूप में की गई
है. यही नहीं शक्ति के तामसिक रूपों में हाकिनी, यक्षिणी, प्रेतिनी आदि की
पूजा भी तांत्रिक और साधक मां के रूप में करते हैं. मां शब्द से उनकी
आक्रमकता कम हो जाती है और वह व्यक्ति को पुत्र व अज्ञानी समझ क्षमा कर
अपनी कृपा बरसती हैं.
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क्या है नवरात्र का महत्व ----
भारत
में शक्ति की पूजा के लिए नवरात्र का अत्यधिक महत्व है. नवरात्र में
प्रायः वातावरण में ऐसी क्रियाएं होती हैं और यदि इस समय पर शक्ति की
साधना, पूजा और अर्चना की जाए तो प्रकृति शक्ति के रूप में कृपा करती है और
भक्तों के मनोरथ पूरे होते हैं. नवरात्र शक्ति महापर्व वर्ष में चार बार
मनाया जाता है क्रमशः चैत्र, आषाढ़, अश्विन, माघ. लेकिन ज्यादातर इन्हें
चैत्र व अश्विन नवरात्र के रूप में ही मनाया जाता है. उसका प्रमुख
व्यवहारिक कारण जन सामान्य के लिए आर्थिक, भौतिक दृष्टि से इतने बड़े पर्व
ज्यादा दिन तक जल्दी-जल्दी कर पाना सम्भव नहीं है. चारो नवरात्र की साधना
प्रायः गुप्त साधक ही किया करते हैं जो जप, ध्यान से माता के आशीर्वाद से
अपनी साधना को सिद्धि में बदलना चाहते हैं.
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नवरात्रि में ये करना है मना----
ज्योतिषाचार्य
पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की प्रचलित मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि
में 9 दिन दाढ़ी-मूंछ और बाल नहीं कटवाई जाती है. इन दिनों नाखून काटने के
लिए भी मना किया जाता है.
जो व्रतधारी नवरात्रि में कलश स्थापना
करते हैं और माता की चौकी स्थापित करते हैं, वे इन 9 दिनों में घर खाली
छोड़कर नहीं जा सकते हैं.
मान्यताओं के अनुसार इस दौरान खाने में
प्याज, लहसुन और मांसाहार (नॉन-वेज) पाबन्दी होती है. केवल यही नहीं,
बल्कि व्रत रखने वालों को नौ दिन तक नींबू काटने पर रोक लगा दिया जाता है.
साथ ही व्रत रखने वालों को 9 दिन काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए. उन्हें
बेल्ट, चप्पल-जूते, बैग जैसी चमड़े की चीजों के इस्तेमाल से बचने के लिए
कहा जाता है.
नवरात्रि व्रतधारी नौ दिनों तक खाने में अनाज और
नमक का सेवन नहीं करते हैं. पौराणिक आख्यानों के अनुसार, नवरात्रि व्रत के
समय दिन में सोने, तम्बाकू चबाने और ब्रह्मचर्य का पालन न करने से भी व्रत
का फल नहीं मिलता है.
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क्यों मनाई जाती है नवरात्रि ----
ज्योतिषाचार्य
पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार नवरात्र को मनाने का एक और कारण है
जिसका वैज्ञानिक महत्व भी स्वयं सिद्ध होता है. वर्ष के दोनों प्रमुख
नवरात्र प्रायः ऋतु संधिकाल में अर्थात् दो ऋतुओं के सम्मिलिन में मनाए
जाते हैं. जब ऋतुओं का सम्मिलन होता है तो प्रायः शरीर में वात, पित्त, कफ
का समायोजन घट बढ़ जाता है. परिणामस्वरूप रोग प्रतिरोध क्षमता कम हो जाती है
और बीमारी महामारियों का प्रकोप सब ओर फैल जाता है. इसलिए जब नौ दिन जप,
उपवास, साफ-सफाई, शारीरिक शुद्धि, ध्यान, हवन आदि किया जाता है तो वातावरण
शुद्ध हो जाता है. यह हमारे ऋषियों के ज्ञान की प्रखर बुद्धि ही है
जिन्होंने धर्म के माध्यम से जनस्वास्थ्य समस्याओं पर भी ध्यान दिया.
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देवी के नौ रूपों की महिमा -----
शक्ति
साधना में मुख्य रूप से नौ देवियों की साधना, तीन महादेवियों की साधना और
दश महाविद्या की साधना आदि का विशेष महत्व है. नवरात्र में दशमहाविद्या
साधना से देवियों को प्रसन्न किया जाता है. दशमहाविद्या की देवियों में
क्रमशः दशरूप- काली, तारा, छिन्नमास्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी,
धूमावती, बगला मुखी (पीताम्बरा), मातंगी, कमला हैं. प्रत्येक विद्या
अलग-अलग फल देने वाली और सिद्धि प्रदायक है. दशमहाविद्याओं की प्रमुख देवी व
एक महाविद्या महाकाली हैं. दशमहाविद्या की साधना में बीज मंत्रें का विशेष
महत्व है. दक्षिण में दशमहाविद्याओं के मंदिर भी है और वहां इनकी पूजा का
आयोजन भी किया जाता है. दशमहाविद्या साधना से बड़ी से बड़ी समस्या को टाला जा
सकता है.
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नवरात्रि में क्या करते हैं श्रद्धालु
मान्यता
है कि देवी दुर्गा को लाल रंग सर्वप्रिय है, इसलिए नवरात्रि व्रतधारी को
लाल रंग के आसन, पुष्प और वस्त्र का प्रयोग करना चाहिए.
प्रचलित
मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि व्रतधारी सुबह और शाम देवी दुर्गा के मंदिर
में या अपने घर के मंदिर में घी का दीपक प्रज्जवलित करते हैं और दुर्गा
सप्तसती और दुर्गा चालीसा का पाठ करते हैं. फिर देवी की आरती करते हैं.
ज्योतिषाचार्य
पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार नवरात्रि में अनेक श्रद्धालु नौ दिन
उपवास रखते हैं या एक समय को भोजन नहीं करते हैं या फिर केवल फलाहार पर
रहते हैं.
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, इन दिनों घर पर आई किसी
भी कन्या को खाली हाथ विदा नहीं किया जाता है. नवरात्रि के नौवें दिन नव
कन्याओं को घर बुलाकर भोजन कराया जाता है.
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नवदुर्गा को तिथि के अनुसार क्या-क्या करें अर्पित---
नवरात्र
में नौ दुर्गा को अलग-अलग तिथि के अनुसार उनकी प्रिय वस्तुएं अर्पित करने
की धार्मिक मान्यता है। जिसमें प्रथम दिन उड़द, हल्दी, माला फूल। दूसरे दिन
तिल, शक्कर, चूड़ी, गुलाल, शहद। तीसरे दिन लाल वस्त्र, शहद, खीर, काजल। चौथे
दिन दही, फल, सिंदूर, मसूर। पांचवें दिन दूध, मेवा, कमलपुष्प, बिंदी। छठे
दिन चुनरी, पताका, दूर्वा। सातवें दिन बताशा, इत्र, फल व पुष्प। आठवें दिन
पूड़ी, पीली मिठाई, कमलगट्टा, चन्दन व वस्त्र। नौवें दिन खीर, सुहाग
सामग्री, साबूदाना, अक्षत, फल व बताशा आदि।
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क्या करें--
शुद्ध
देशी घी का अखंड दीप प्रज्ज्वलित कर धुप जलाकर मां जगदम्बा की पूजा अर्चना
करने के साथ ही यथासंभव रात्रि जागरण करना चाहिए। मां की प्रसन्नता के लिए
सर्वाधिक प्रदायक सरल मन्त्र "ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे" का जाप
करना चाहिए।
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शक्ति पूजन के बिना अधूरी है देव पूजा ----
आप
किसी देवता की पूजा करते हैं परन्तु आपने शक्ति की आराधना नहीं की तो पूजा
अधूरी मानी जाती है. श्रीयंत्र पूजा शक्ति साधना का एक बड़ा ही प्रखररूप
है. शक्ति के बिना शिव शव हैं ऐसा प्रायः धर्मशास्त्र में कहा गया है. यही
नहीं शक्ति का योगबल विद्या में भी बड़ा महत्व है, बिना शक्ति जगाए योग की
सिद्धि प्राप्त नहीं की जा सकती है.
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नवग्रह की समस्या से मिलती है मुक्ति---
ज्योतिषाचार्य
पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ज्योषिय आधार पर ऐसा माना जाता है कि
यदि व्यक्ति नौ देवियों की नौ दिन तक साधना करता है तो उससे उस साधक के नौ
ग्रह शांत होते हैं. ये सब मां शक्ति की कृपा स्वरूप होता है. यही नहीं काल
सर्प दोष, कुमारी, दोष, मंगल दोष आदि में मां की कृपा से मुक्त हुआ जा
सकता है. भारतीय ऋषियों के वैदिक ज्ञान के विश्लेषण और विश्व के व्यवहारिक
पहलू का विश्लेषण से ऐसा कहना तर्क संगत है कि शक्ति (नारी) की पूजा बिना
हम और हमारे कर्मकांड अधूरे हैं |
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शारदीय नवरात्र व्रत के दिन एवं महत्ता----
शारदीय
नवरात्र में एक दिन, तीन दिन ,पांच दिन, सात दिन और नौ दिन के व्रत का
नियम है। नवरात्र के प्रारम्भ और अंतिम दिन के व्रत को एकरात्र (एकदिनी)
व्रत कहा जाता है। प्रतिपदा और नवमी तिथि के दिन एक बार भोजन किया जाए उसे
द्विरात्रि व्रत कहा जाता हैं।
सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि को
एक बार भोजन करने का विधान है, जिसे त्रिरात्र व्रत कहा जाता है। एकरात्र,
द्विरात्र, त्रिरात्र, पंचरात्रि, सप्तरात्रि और नवरात्रि व्रत की विशेष
महिमा है। नवरात्र में व्रत रखने के पश्चात व्रत की समाप्ति पर हवन आदि कर
कुमारी कन्याओं व बटुकों का पूजन कर उन्हें भोग लगाना चाहिए तत्पश्चात
सामर्थ्य के अनुसार उन्हें नव वस्त्र, ऋतुफल, मिष्ठान आदि देकर उनसे
आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए तब जाकर व्रत पूर्णतया फलीभूत होता है।
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