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जानिए क्‍या हैं चांडाल दोष और कैसे बनता हैं चांडाल योग ?








जानिए क्‍या हैं चांडाल दोष और कैसे बनता हैं चांडाल योग ?
क्या आपकी जन्‍मकुंडली में चांडाल योग है

प्रिय पाठकों/मित्रों, गुरु ज्ञान एवं बुद्धि प्रदान करता है तो वहीं राहु छाया ग्रह है जो सदा अनिष्‍ट फल देता है। माना जाता है कि बृहस्‍पति देवताओं के गुरु हैं और राहु राक्षसों के गुरु हैं। इन दोनों ग्रहों का किसी भी तरह से संबंध होने पर गुरु चंडाल योग का निर्माण होता है। बृहस्पति और राहु जब साथ होते हैं या फिर एक दूसरे को किन्ही भी भावो में बैठ कर देखते हो, तो गुरू चाण्डाल योग निर्माण होता है। कुंडली में गुरु और राहु की युति होने पर यह योग बनता है। राहु के प्रभाव में आकर गुरु भी अनिष्‍ट फल देने लगता है। चंडाल को नीच समझा गया है एवं कहा जाता है कि इसकी छाया भी संसार या गुरु को अशुद्ध कर सकती है।

राहू और केतु दोनों छाया ग्रह है। पुराणों में यह राक्षस है। राहू और केतु के लिए बड़े सर्प  या अजगर की कल्पना करने में आती है। राहू सर्प का मस्तक है तो केतु सर्प की पूंछ. ज्योतिषशास्त्र में राहू -केतु दोनों पाप ग्रह है। अत: यह दोनों ग्रह जिस भाव में या जिस ग्रह के साथ हो उस भाव या उस ग्रह संबंधी अनिष्ठ फल दर्शाता है। यह दोनों ग्रह चांडाल जाती के है। इसलिए गुरु के साथ इनकी युति गुरु चांडाल या विप्र (गुरु) चांडाल ( राहू-केतु ) योग कहा जाता है।

चांडाल योग के दुष्प्रभाव के कारण जातक का चरित्र भ्रष्ट हो सकता है तथा ऐसा जातक अनैतिक अथवा अवैध कार्यों में संलग्न हो सकता है। इस दोष के निर्माण में बृहस्पति को गुरु कहा गया है तथा राहु और केतु को चांडाल माना गया है और गुरु का इन चांडाल माने जाने वाले ग्रहों में से किसी भी ग्रह के साथ स्थिति अथवा दृष्टि के कारण संबंध स्थापित होने से कुंडली में गुरु चांडाल योग का बनना माना जाता है।किसी कुंडली में राहु का गुरु के साथ संबंध जातक को बहुत अधिक भौतिकवादी बना देता है जिसके चलते ऐसा जातक अपनी प्रत्येक इच्छा को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक धन कमाना चाहता है जिसके लिए ऐसा जातक अधिकतर अनैतिक अथवा अवैध कार्यों का चुनाव कर लेता है। 

चंडाल  शब्द से  हमारे  समाज में उस इंसान से लिया  जता है जो की  सबका बुरा  करता  है , अपने खुद   के स्वार्थ  के लिय  वो किसी भी हद  तक गिर  सकता  है और कोई  भी बुरा  से  बुरा काम  करने में हिचकिचाता नही है \ ऐसे कार्य जो किसी भी समाज में उचित नही माने  जाते ऐसे कार्य  करने  वाले इंसान को अक्सर  चंडाल कहकर सम्बोधित किया जाता  है |

ज्योतिष में गुरु को ज्ञान, हवा,  सांस, सोना  आदि  का कारक  माना  जाता  है | अध्यात्मिक  विकास में यदि किसी ग्रह का  सबसे ज्यादा योगदान माना जाता है तो  वो  गुरु ग्रह ही है | गुरु हमे प्रक्रति द्वारा  दी हुई साँसों का कारक ग्रह है ऐसे में जब  ये कुंडली  में मौत के भाव का मालिक  बनता  है तो मौत  भी किसी भले  कार्य  के लिय होती  है और यदि दुश्मनी के भाव के  भाव का मालिक  बनता  है तो जातक  को दुश्मनों से भी लाभ  दिला  देता  है | जब ये धन भाव का  स्वामी  बन रहा हो  तो धन भी अछ्छे तरीके से कमाने  के योग  बनाता  है तो  साथ ही यदि व्यय भाव से सम्बन्ध बना  रहा हो तो धन का खर्च भी अच्छे कार्यके लिए करवाता है  लेकिन राहू जिसे धुंवे का  कारक माना  गया है  जब ये राहू की हवा में घुलता है तो हवा को सांस लेने  लायक  नही रहने देता | राहू विचारों में गंदापन है और जब गुरु  के अध्यात्मिक विचारों में राहू के गंदे विचार आते है तो फिर ऐसा इंसान मन्दिर  जैसे पवित्र स्थान में  भी कुकर्म करने में पीछे  नही  रहता है | राहू के विचार जब  गुरु के ज्ञान पर  हावी हो जाए तो फिर इंसान अपने ज्ञान को भी अपने ऐशो आराम के साधनों की पूर्ति  के लिए  प्रयोग करने लग जाता है | गुरु जो  की जीव का कारक  ग्रह है ऐसा इंसान किसी आतकवादी जैसी घटना  आदि में सामिल होकर जीव की  हत्या जैसे कार्य करने  में भी पीछे नही हटता है | गुरु हवा का कारक ग्रह है और राहू जहरीली गैस ऐसे में जब  इस  गैस का हवा के साथ मिलन होता है तो केवल जातक ही नही उसके परिवार  और  पडोस  के लोग  भी परेशान तक हो जाते  है |

इन दोनों के योग  से  मसनुई ग्रह बुद्ध का निर्माण हो जाता  है जो  जातक को फोकी इज्जत  और सोहरत समाज में देता  है |ऐसे में जातक  की सिथ्ती  का निर्धारण कुंडली में मुख्य रूप  से बुद्ध की सिथ्ती करती  है | साथ हि जब कुंडली में सूर्य चन्द्र मंगल कायम  हो  तो  गुरु  दोनों जहानों का मालिक होगा  और इनकी  युति के बुरे  फल जातक को नही मिलेंगे | जब भी राहू गुरुके  साथ हो  या गुरु  के  भावों  में हो  उस  समय में वो नीच का हो जाता है और ऐसे में जब  गुरु राहू के साथ हो तो गुरु चुप  हो  जाता है | गुरु जो की सोने का कारक  ग्रह  है राहू उसे पीतल बनाने का कार्य  करता है लेकिन  यदि गुरु को चन्द्र की मदद मिल जाती है तो गुरु पर से राहू  का  प्रभाव  खत्म होने लग  जाता है | जैसे की आप यदि पीतल  के बर्तन में पानी डालकर रख दें तो उसमे से  राहू  का नीला रंग अलग  होने लग जाता है | जब कुंडली में इन  दोनों  की युति एक  से छ्टे भाव में हो तो गुरु दोनों जहान का मालिक  होता है लेकिन  सात  से बारवें भाव में हॉट ओ गुरु केवल  एक जहान  का मालिक होता है वो  रूहानी नही  होता  यानी की जातक को अध्यात्निक छेत्र में  सफलता  नही  मिल  पाती है |

राहू  गुरु  की  युति  जातक के परिवार में बाप  दादा का दमे सांस की  बिमारी होने के योग  अवस्य बना देती  है | गुरु जो की कालपुरुष की कुंडली  में धर्म भाग्य भाव का मालिक  होता है राहू इनसे सम्बन्धित अनेक परेशानी जातक के  जीवन में उत्पन  कर देता  है  तो साथ ही गुरु व्यय भाव के मालिक  होने  से अनावश्यक खर्च में जातक के  बढ़ोतरी कर  देता  है |

एक खास बता है की यदि इनकी  युति दुसरे  भाव में हो  तो  जातक हमेशा दूसरों का मददगार  होता है और नेक काम करने वाला होता है | यदि पंचम  भाव में इनकी युति  हो  तो जातक नेता या डॉक्टर के छेत्र में सफलता प्राप्त कर लेता है | चोथे  भाव में इनकी  युति बुरा फल नही  दे  पाती  और जातक  को  चन्द्र के भी  उत्तम  फल मिलते  है |सप्तम  भाव में इनकी युति जातक को जवानी के दिनों में पुरे ऐश आराम  देतीहै लेकिन विवाहिक जीवन में समस्या देती  है | तीसरे भाव में इनकी युति  से जातक आँख की होसियारी से काम लेने वाला होता है लेकिन अष्टम  भाव में इनकी युति जातक के  जीवन  को केवल खाना पूर्ति  का नाम बना  देती है बारवें भाव में इनकी  युति जातक को हुनरमंद बना देती  है |अधिक जानकारी हेतु आप पंडित दयानन्द शास्त्री से 09039390067 पर संपर्क कर सकते हैं |

मेने मेरे अनुभव में पाया की जब जन्म कुंडली में यदि राहु बलशाली हुए तो शिष्य, गुरू के कार्य को अपना बना कर प्रस्तुत करते हैं या गुरू के ही सिद्धांतों का ही खण्डन करते हैं। बहुत से मामलों में शिष्यों की उपस्थिति में ही गुरू का अपमान होता है और शिष्य चुप रहते हैं। यहां शिष्य ही सब कुछ हो जाना चाहते हैं और कालान्तर में गुरू का नाम भी नहीं लेना चाहते। राहु और बृहस्पति का सम्बन्ध होने से शिष्य का गुरू के प्रति द्रोह देखने में आता है। गुरू-शिष्य में विवाद मिलते हैं। शोध सामग्री की चोरी या उसके प्रयोग के उदाहरण मिलते हैं, धोखा-फरेब यहां खूब देखने को मिलेगा परन्तु राहु और गुरू युति में यदि गुरू बलवान हुए तो गुरू अत्यधिक समर्थ सिद्ध होते हैं और शिष्यों को मार्गदर्शन देकर उनसे बहुत बडे़ कार्य या शोध करवाने में समर्थ हो जाते हैं। शिष्य भी यदि कोई ऎसा अनुसंधान करते हैं जिनके अन्तर्गत गुरू के द्वारा दिये गये सिद्धान्तों में ही शोधन सम्भव हो जाए तो वे गुरू की आज्ञा लेते हैं या गुरू के आशीर्वाद से ऎसा करते हैं। यह सर्वश्रेष्ठ स्थिति है और मेरा मानना है कि ऎसी स्थिति में उसे गुरू चाण्डाल योग नहीं कहा जाना चाहिए बल्कि किसी अन्य योग का नाम दिया जा सकता है परन्तु उस सीमा रेखा को पहचानना बहुत कठिन कार्य है जब गुरू चाण्डाल योग में राहु का प्रभाव कम हो जाता है और गुरू का प्रभाव बढ़ने लगता है।अधिक जानकारी हेतु आप पंडित दयानन्द शास्त्री से 09039390067 पर संपर्क कर सकते हैं |

कुछ कुंडलियों में गुरू चाण्डाल योग का एकदम उल्टा तब देखने को मिलता है जब गुरू और राहु एक दूसरे से सप्तम भाव में हो और गुरू के साथ केतु स्थित हों। बृहस्पति के प्रभावों को पराकाष्ठा तक पहुँचाने में केतु सर्वश्रेष्ठ हैं। केतु त्याग चाहते हैं, कदाचित बाद में वृत्तियों का त्याग भी देखने को मिलता है। केतु भोग-विलासिता से दूर बुद्धि विलास या मानसिक विलासिता के पक्षधर हैं और गुरू को, गुरू से युति के कारण अपने जीवन में श्रेष्ठ गुरू या श्रेष्ठ शिष्य पाने के अधिकार दिलाते हैं। इनको जीवन में श्रेय भी मिलता है और गुरू या शिष्य उनको आगे बढ़ाने के लिए अपना योगदान देते हैं। इस योग का नामकरण कोई बहुत अच्छे ढंग से नहीं हुआ है परन्तु गुरू चाण्डाल योग को ठीक उलट कोई सुन्दर सा नाम अवश्य दिया जाना चाहिये। अधिक जानकारी हेतु आप पंडित दयानन्द शास्त्री से 09039390067 पर संपर्क कर सकते हैं |

चाण्डाल का अर्थ निम्नतर जाति है। कहा गया कि चाण्डाल की छाया भी ब्राह्मण को या गुरू को अशुद्ध कर देती है। गुरु चंडाल योग को संगति के उदाहरण से आसानी से समझ सकते हैं। जिस प्रकार कुसंगति के प्रभाव से श्रेष्ठता या सद्गुण भी दुष्प्रभावित हो जाते हैं। ठीक उसी प्रकार शुभ फल कारक गुरु ग्रह भी राहु जैसे नीच ग्रह के प्रभाव से अपने सद्गुण खो देते है। जिस प्रकार हींग की तीव्र गंध केसर की सुगंध को भी ढक लेती है और स्वयं ही हावी हो जाती है, उसी प्रकार राहु अपनी प्रबल नकारात्मकता के तीव्र प्रभाव में गुरु की सौम्य, सकारात्मकता को भी निष्क्रीय कर देता है। सामान्यत: यह योग अच्छा नहीं माना जाता। जिस भाव में फलीभूत होता है, उस भाव के शुभ फलों की कमी करता है। यदि मूल जन्म कुंडली में गुरु लग्न, पंचम, सप्तम, नवम या दशम भाव का स्वामी होकर चांडाल योग बनाता हो तो ऐसे व्यक्तियों को जीवन में बहुत संघर्ष करना पड़ता है। जीवन में कई बार गलत निर्णयों से नुकसान उठाना पड़ता है। पद-प्रतिष्ठा को भी धक्का लगने की आशंका रहती है।

प्रभावित जातक -:
जैसा कि हमने पहले भी बताया है कि चंडाल योग में जातक अपने ही गुरु से ईर्ष्‍या भाव रखता है। इसके प्रभाव में जातक का पराई स्त्रियों में मन लगता है एवं वह चरित्रहीन बनता है। इसके अलावा जातक चोरी, जुआ, सट्टा, अनैतिक कार्यों, नशा और हिंसक कार्यों में लिप्‍त रहता है।

जानिए चांडाल दोष का प्रभाव प्रभाव----

कोई भी जातक जन्म कुंडली में चंडाल योग के बनने पर जातक अपने गुरू का अनादर करता है एवं उनके प्रति ईर्ष्‍या भाव रखता है। राहु चांडाल जाति, स्वभाव में नकारात्मक तामसिक गुणों का ग्रह है, इसलिए इस योग को गुरु चांडाल योग कहा जाता है। जिस जातक की कुंडली में गुरु चांडाल योग यानि कि गुरु-राहु की युति हो वह व्यक्ति क्रूर, धूर्त, मक्कार, दरिद्र और कुचेष्टाओं वाला होता है। ऐसा व्यक्ति षडयंत्र करने वाला, ईष्र्या-द्वेष, छल-कपट आदि दुर्भावना रखने वाला एवं कामुक प्रवत्ति का होता है, उसकी अपने परिवार जनो से भी नही बन पाती तथा वह खुद को अकेला महसूस करने लग जाता है और उसका मन हमेशा व्याकुल रहता है। अधिक जानकारी हेतु आप पंडित दयानन्द शास्त्री से 09039390067 पर संपर्क कर सकते हैं |

यदि कुंडली में राहु मजबूत स्थिति में है तो जातक अपने गुरू के कार्य को ही अपनाता है किंतु वह गुरू के सिद्धांतों को नहीं मानता, शिष्य अपने गुरू के कार्य को अपना बना कर प्रस्तुत करते हैं एवं शिष्यों के सामने ही गुरू का अपमान होता है और शिष्य चुपचाप ये सब देखते रहते हैं। वहीं दूसरी ओर राहु के कमजोर होने की स्थिति में जातक अपने गुरू को सम्‍मान देता है। राहु के आगे गुरू का प्रभाव काफी कमजोर पड़ जाता है। गुरू, राहु के दुष्‍प्रभाव को रोक पाने मे असफल रहता है।
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राहू-केतु जिस तरह गुरु के साथ चांडाल योग बनाते है इसी तरह अन्य ग्रहों के साथ चांडाल योग बनाते है जो निम्न प्रकार के है--

1) रवि-चांडाल योग : सूर्य के साथ राहू या केतु हो तो इसे रवि चांडाल योग कहते है। इस युति को सूर्य ग्रहण योग भी कहा जाता है। इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक गुस्सेवाला और जिद्दी होता है। उसे शारीरिक कष्ठ भी भुगतना पड़ता है। पिता के साथ मतभेद रहता है और संबंध अच्छे नहीं होते। पिता की तबीयत भी अच्छी नहीं रहती।
2) चन्द्र-चांडाल योग : चन्द्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे चन्द्र चांडाल योग कहते है। इस युति को चन्द्र ग्रहण योग भी कहा जाता है। इस योग में जन्म लेनेवाला शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य नहीं भोग पाता। माता संबंधी भी अशुभ फल मिलता है। नास्तिक होने की भी संभावना होती है।
3) भौम-चांडाल योग : मंगल के साथ राहू या केतु हो तो इसे भौम चांडाल योग कहते है। इस युति को अंगारक योग भी कहा जाता है। इस योग में जन्म लेनेवाला अत्याधिक क्रोधी, जल्दबाज, निर्दय और गुनाखोर होता है। स्वार्थी स्वभाव, धीरज न रखनेवाला होता है। आत्महत्या या अकस्मात् की संभावना भी होती है।
4) बुध-चांडाल योग : बुध के साथ राहू या केतु हो तो इसे बुध चांडाल योग कहते है। बुद्धि और चातुर्य के ग्रह के साथ राहू-केतु होने से बुध के कारत्व को हानी पहुचती है। और जातक अधर्मी। धोखेबाज और चोरवृति वाला होता है।
5) गुरु-चांडाल योग : गुरु के साथ राहू या केतु हो तो इसे गुरु चांडाल योग कहते है।ऐसा जातक नास्तिक, धर्मं में श्रद्धा न रखनेवाला और नहीं करने जेसे कार्य करनेवाला होता है।
6) भृगु-चांडाल योग : शुक्र के साथ राहू या केतु हो तो इसे भृगु चांडाल योग कहते है। इस योग में जन्म लेनेवाले जातक का जातीय चारित्र शंकास्पद होता है। वैवाहिक जीवन में भी काफी परेशानिया रहती है। विधुर या विधवा होने की सम्भावना भी होती है।
7) शनि-चांडाल योग : शनि के साथ राहू या केतु हो तो इसे शनि चांडाल योग कहते है। इस युति को श्रापित योग भी कहा जाता है। यह चांडाल योग भौम चांडाल योग जेसा ही अशुभ फल देता है। जातक झगढ़ाखोर, स्वार्थी और मुर्ख होता है। ऐसे जातक की वाणी और व्यव्हार में विवेक नहीं होता। यह योग अकस्मात् मृत्यु की तरफ भी इशारा करता है।
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यह करें उपाय चांडाल दोष निवारण हेतु ---

गुरु चांडाल योग के जातक के जीवन पर जो भी दुष्प्रभाव पड़ रहा हो उसे नियंत्रित करने के लिए जातक को भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। एक अच्छा ज्योतिषी कुण्डली देख कर यह बता सकता है कि हमे गुरु को शांत करना उचित रहेगा या राहु के उपाय जातक से करवाने पड़ेंगे। अगर चाण्डाल दोष गुरु या गुरु के मित्र की राशि या गुरु की उच्च राशि में बने तो उस स्थिति में हमे राहु देवता के उपाय करके उनको ही शांत करना पड़ेगा ताकि गुरु हमे अच्छे प्रभाव दे सके। राहु देवता की शांति के लिए मंत्र-जाप पुरे होने के बाद हवन करवाना चाहिए तत्पश्चात दान इत्यादि करने का विधान बताया गया है. अगर ये दोष गुरु की शत्रु राशि में बन रहा हो तो हमे गुरु और राहु देवता दोनों के उपाय करने चाहिए गुरु-राहु से संबंधित मंत्र-जाप, पूजा, हवन तथा दोनों से सम्बंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए।अधिक जानकारी हेतु आप पंडित दयानन्द शास्त्री से 09039390067 पर संपर्क कर सकते हैं |

इन उपायों से भी होगा चांडाल दोष में लाभ--
---योग्य गुरु की शरण में जाएँ, अपने गुरु की निस्‍वार्थ भाव से सेवा करें और आशीर्वाद प्राप्त करें। स्वयं हल्दी और केसर का टीका लगाएँ।
---निर्धन विद्यार्थियों को अध्ययन में सहायता करें।
----राहु ग्रह का जप-दान करने से लाभ होगा।
---गाय को भोजन कराएं एवं नियमित हनुमान चालीसा का पाठ करें।
----कोई भी महत्‍वपूर्ण निर्णय लेते समय बड़ों की राय अवश्‍य लें।
---अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें एवं प्रसन्‍न रहें।
---बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करें और अपने माता-पिता का आदर करें।
---नियमित रूप से स्वयं हल्दी और केसर का टीका लगाने से लाभ होगा।
---भगवान गणेश और देवी सरस्वती की आराधना करें और मंत्र का जाप करें।
----बरगद के वृक्ष में कच्चा दूध डालें और केले के वृक्ष का भी पूजन करें।

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