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जानिए कैसे करें प्रसन्न इस सर्व पितृ अमावस्या 19 सितंबर 2017(मंगलवार) को महालय/पितृपक्ष/श्राद्धपक्ष में






जानिए कैसे करें प्रसन्न इस सर्व पितृ अमावस्या  19 सितंबर 2017(मंगलवार) को महालय/पितृपक्ष/श्राद्धपक्ष में --पितृ स्त्रोत द्वारा---
(अपने पितरों को प्रसन्‍न करने का उपाय हैं  पितृस्तोत्र)

प्रिय मित्रों/पाठकों, हमारे हिंदू शास्त्रों के अनुसार हमारे जो पूर्वज अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं चाहे वे किसी भी रूप में या किसी भी लोक में हों, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, वह श्राद्ध है। पूराणों की ऐसी मान्‍यता है कि सावन मास की पूर्णिमा से ही पितृ मृत्यु लोक में आ जाते हैं और नई अंकुरित कुशा की नोकों पर विराजमान हो जाते हैं। शास्त्रानुसार वैसे तो प्रत्येक अमावस्या पितृ की पुण्य तिथि होती है परंतु आश्विन मास की अमावस्या पितृओं के लिए परम फलदायी कही गई है। इसे सर्व पितृ विसर्जनी अमावस्या अथवा महालया के नाम से जाना जाता है।

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जानिए पितृ मोक्ष अमावस्या का महत्व---

यह श्राद्ध के महीने में आखरी दिन होता हैं, जो कि आश्विन की आमवस्या का दिन होता हैं, इस दिन सभी तर्पण विधि पूरी करते हैं, इस दिन भूले एवम छूटे सभी श्राद्ध किये जाते हैं | इस दिन दान का महत्व होता हैं | इस दिन ब्राह्मणों एवम मान दान लोगो को भोजन कराया जाता हैं| पितृ पक्ष में पितृ मोक्ष अमावस्या का सबसे अधिक महत्व होता हैं | 

सूर्य की अनंत किरणों में सर्वाधिक प्रमुख किरण का नाम 'अमा' है। उस अमा नामक प्रधान किरण के तेज से ही सूर्यदेव तीनों लोको को प्रकाशित करते हैं। उसी अमा किरण में तिथि विशेष को चंद्रदेव निवास (वस्य) करते हैं, अतः इस तिथि का नाम अमावस्या है। अमावस्या प्रत्येक पितृ संबंधी कार्यों के लिए अक्षय फल देने वाली बताई गई है। 

आज के समय में व्यस्त जीवन के कारण मनुष्य तिथिनुसार श्राद्ध विधि करना संभव नहीं होता ऐसे में इस दिन सभी पितरो का श्राद्ध किया जा सकता हैं | श्राद्ध में दान का बहुत अधिक महत्व होता हैं | इन दिनों ब्राह्मणों को दान दिया जाता हैं जिसमे अनाज, बर्तन, कपड़े आदि अपनी श्रद्धानुसार दान दिया जाता हैं | इन दिनों गरीबो को भोजन भी कराया जाता हैं | श्राद्ध तीन पीढ़ी तक किया जाना सही माना जाता हैं इसे बंद करने के लिए अंत में सभी पितरो के लिए गया (बिहार), बद्रीनाथ जाकर तर्पण विधि एवम पिंड दान किया जाता हैं | इससे जीवन में पितरो का आशीर्वाद बना रहा हैं एवम जीवन पितृ दोष से मुक्त होता हैं |

'सर्वपितृ अमावस्या' के दिन सभी भूले-बिसरे पितरों का श्राद्ध कर उनसे आशीर्वाद की कामना की जाती है। 'सर्वपितृ अमावस्या' के साथ ही 15 दिन का श्राद्ध पक्ष खत्म हो जाता है। 'सर्वपितृ अमावस्या' पर हम अपने उन सभी प्रियजनों का श्राद्घ कर सकते हैं, जिनकी मृत्यु की तिथि का ज्ञान हमें नहीं है। वे लोग जो किसी दुर्घटना आदि में मृत्यु को प्राप्त होते हैं, या ऐसे लोग जो हमारे प्रिय होते हैं किंतु उनकी मृत्यु तिथि हमें ज्ञात नहीं होती तो ऐसे लोगों का भी श्राद्ध इस अमावस्या पर किया जा सकता है। 

जो लोग किसी कारण वश तिथि विशेष को श्राद्ध करना भूल गए या जिनकी कुंडली में पितृ दोष है वे इसदिन पितरो को प्रसन्न कर अपनी जन्म कुंडली के गृह को ठीक कर सकते है क्योंकि  पितृ दोष की वजह से अछे गृह भी अच्छा फल देने में असफल रह ते रहते है इस दिन आप खीर पुड़ी का ब्राह्मण को भोजन करावें , वस्त्र दक्ष्ना देवे, कौवों को खीर खिलावे, गायों को हरा चारा खिलावें, बहन बेटी भांजी को खुश करें |

यदि कोई परिवार पितृदोष से कलह तथा दरिद्रता से गुजर रहा हो और पितृदोष शांति के लिए अपने पितरों की मृत्यु तिथि मालूम न हो तो उसे सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध-तर्पणादि करना चाहिए, जिससे पितृगण विशेष प्रसन्न होते हैं और यदि पितृदोष हो तो उसके प्रभाव में भी कमी आती है।
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जानिए पितर या पितृ गण कौन हैं ?
पितृ गण हमारे पूर्वज  हैंजिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि   उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए  किया है | मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है|  आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज  मिलते हैं |अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया |इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार  पर सूर्य लोक की तरफ बढती है |वहाँ से आगे  ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को बेध कर  स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित  होती है |जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता | मनुष्य लोक एवं पितृ लोक  में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश  ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं|
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जानिए पितृ दोष क्या होता है?
हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म  व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं  तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों  को श्राप दे देती हैं,जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है | 
पितृ दोष एक अदृश्य  बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है |पितरों के रुष्ट होने के बहुत से  कारण  हो सकते हैं ,आपके आचरण  से,किसी  परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से ,अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है |
इसके अलावा मानसिक अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना ,वैवाहिक जीवन में समस्याएं.,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है , पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ  फल नहीं मिल पाते, कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए , उसका शुभ फल नहीं मिल पाता|

पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है----
 
१.अधोगति वाले पितरों के कारण
२. .उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण 
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अधोगति वाले पितरों के दोषों ----
का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण,
परिजनों की अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद  के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग
होने पर,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसी  प्रियजन को अकारण
कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं , परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं|
उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते , परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति- रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं | इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है , फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ, उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता | 

पितृ दोष निवारण के लिए  सबसे पहले ये जानना  ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ?
जन्म पत्रिका और  पितृ दोष
 
जन्म  पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम  और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है |पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य ,चन्द्रमा ,गुरु ,शनि ,और राहू -केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है |इनमें से भी गुरु ,
शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है |

इनमें सूर्य से पिता या पितामह , चन्द्रमा से माता या मातामह ,मंगल से भ्राता या भगिनी  और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है |अधिकाँश लोगों की  जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु ,शनि  और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है ,इसलिए विभिन्न उपायों को करने  के साथ साथ व्यक्ति यदि पंचमुखी ,सातमुखी और आठ मुखी रुद्राक्ष भी धारण  कर ले , तो पितृ दोष का निवारण शीघ्र हो जाता है |पितृ दोष निवारण के लिए इन  रुद्राक्षों को धारण करने के अतिरिक्त इन ग्रहों के अन्य उपाय जैसे मंत्र  जप और स्तोत्रों का पाठ करना भी श्रेष्ठ होता है |
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जानिए विभिन्न ऋण और पितृ दोष---
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हमारे ऊपर मुख्य रूप से 5 ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित  रूप से श्राप मिलता है ,ये ऋण हैं : मातृ ऋण ,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण |
 
---मातृ ऋण : माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा ,मौसी और इनके तीन पीढ़ी 
के पूर्वज  होते हैं ,क्योंकि माँ का स्थान  परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा  माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है,तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं |इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है |
 
----पितृ ऋण: : पिता पक्ष के  लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी  और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है |पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया  देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है ,और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है |पर आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ?पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है ,इस धर्म का पालन न करने पर  उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विबिन्न प्रकार के कष्ट  आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि |

-----देव ऋण :माता -पिता प्रथम देवता हैं,जिसके कारण भगवान गणेश महान बने |इसके बाद  हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज  भी भी अपने अपने कुल देवताओं को मानते थे , लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है |इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं|

----ऋषि ऋण : जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए ,वंश वृद्धि की ,उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है ,उनके ऋषि तर्पण आदि नहीं करती है | इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं,इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है |

----मनुष्य  ऋण : माता -पिता  के अतिरिक्त जिन अन्य मनुष्यों ने हमें प्यार दिया ,दुलार दिया ,हमारा ख्याल रखा ,समय समय पर मदद की |गाय आदि पशुओं का दूध पिया |जिन अनेक मनुष्यों  ,पशुओं ,पक्षियों  ने हमारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद की ,उनका ऋण भी हमारे ऊपर हो गया |लेकिन लोग आजकल गरीब ,बेबस ,लाचार लोगों की धन संपत्ति हरण करके अपने को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते हैं|इसी कारण देखने में आया है कि ऐसे लोगों का पूरा परिवार जीवन भर नहीं बस पाता है,वंश हीनता ,संतानों का गलत संगति में पड़ जाना,परिवार के सदस्यों का आपस में सामंजस्य  न बन पाना ,परिवार कि सदस्यों का किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहना इत्यादि दोष उस परिवार में उत्पन्न हो जाते हैं |ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है| रामायण में  श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ के परिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है |इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है|  

श्राद पक्ष में पितृ के नाम से जो भी समान हम ब्राह्मण को दान करते है जैसे- भोजन, आसन, कपड़े, चप्‍पल, छाता, आदि, उसे पितृ सूक्ष्म रूप में आकर ग्रहण करते हैं। पूराणों की ऐसी मान्‍यता है कि केवल तीन पीढ़ियों का श्राद्ध और पिंड दान ही करने का ही विधान है।

मृत-पूर्वजों का श्राद करने के लिए अगर हो सके तो हमें कोई तीर्थ या पवित्र जलाशय को चुनना चाहिए और जलाशय में स्नान कर वहां किसी विद्वान ब्राह्मण से पितृ तर्पण व श्राद्ध कर्म करनावा चाहिए। अपने घर में पितरों की तस्वीर की गंध, अक्षत, काले तिल चढ़ाकर या पीपल के वृक्ष में जल अर्पित कर नीचे लिखे पितृस्तोत्र का पाठ करना चाहिए अगर आप पाठ न कर सके तो किसी विद्वान ब्राह्मण से पितृस्‍तोत्र का पाठ करवाना चाहिए।

===ब्रह्म पुराण (२२०/१४३ )में  पितृ गायत्री मंत्र दिया गया है ,इस मंत्र कि प्रतिदिन १ माला या अधिक जाप करने से पितृ दोष में अवश्य लाभ होता है| 
 
मंत्र :  देवताभ्यः पित्रभ्यश्च महा योगिभ्य एव  च
  |   नमः स्वाहायै   स्वधायै  नित्यमेव नमो नमः  || "
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क्या दिया जाता है श्राद्ध में? 
श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है। 
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श्राद्ध में कौओं का महत्त्व ---
कौए को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वह रुष्ट हो जाते हैं। इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है। 
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किस तारीख में करना चाहिए श्राद्ध? 
सरल शब्दों में समझा जाए तो श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु की तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाना है। अगर किसी परिजन की मृत्यु प्रतिपदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिपदा के दिन ही किया जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है। इस विषय में कुछ विशेष मान्यता भी है जो निम्न हैं: 
* पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाता है। 
* जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हुई जो यानि किसी दुर्घटना या आत्महत्या के कारण हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है।
* साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वाद्वशी के दिन किया जाता है। 
* जिन पितरों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है।  इस दिन को सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता है। 
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मार्कंडेय पुराण (९४/३ -१३ )में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ  प्रसन्न होकर  स्तुतिकर्ता  मनोकामना कि पूर्ती करते हैं | पुराणोक्त  पितृ -स्तोत्र : 
यह पितृ स्तोत्र ----मार्कण्डेय पुराण /गरुड़ पुराण से लिया गया हैं---

                                                                  पितृस्तोत्र
                                                              ।।रूचिरूवाच।।
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्। नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा। सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।

मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा। तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा। द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्। अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।

प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च। योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु। स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा। नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।

अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्। अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:। जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।

तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:। नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज।।
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उपरोक्त पितृ स्त्रोत भी हमारे हिन्दू शास्त्रों में दिया हुआ हैं--

उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥

अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥

ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥

त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥

त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥

त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु पोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः
त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥

बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥

आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥

उपहूताः पितरः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥ 

आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥

अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥

येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥

अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥

आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥

आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यःपितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥

॥ ओम शांति: शांति:शांति:॥ 


पितृस्‍तोत्र पाठ के बाद अपने पूवजों से सुख, शांति, सफलता की कामना कर अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्मणों, गरीबों को दान देना चाहिए। वेदों में लिखा है कि श्राद्ध पक्ष में सभी शुभ, और मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं। पितृरों का श्राद्ध दोपहर के समय करना चाहिए एंव श्राद में सर्वप्रथम गाय फिर कौआ और अंतिम में कुत्ते का ग्रास निकालना चाहिए। क्‍योंकि यह सभी जीव यमदेवता के बहुत नजदीक माने गए हैं। गाय का ज्‍यादा महत्‍व है क्‍योंकि गाय को वैतरणी पार कराने में सहायक माना जाता है।









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